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मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत लिखेंगे,
अलावा नहीं कुछ हिमाकत लिखेंगे !
नहीं कल्पना ही लिखेंगे यहाँ अब,
लिखेंगे तो बस हम हकीकत लिखेंगे!
लिखेंगे नहीं हम कभी झूठ बातें,
सलामत अगर हैं सलामत लिखेंगे!
मुहब्बत ही करते रहें हैं यहाँ जो ,
ग़ज़ल दर ग़ज़ल हम मुहब्बत लिखेंगे!
ग़ज़ल जब लिखेंगे तुम्हारे लिए तो,
कसम से तुम्हें खूबसूरत लिखेंगे!
इशारा हमें जो किया आपने है ,
इसे हम मुहब्बत की दावत लिखेंगे!
गये छोड़कर के मिरे पास में दिल,
मुहब्बत की उसको वसीयत लिखेंगे!
नहीं लिख सका गर मुहब्बत की बातें ,
खुदा की अजी हम इबादत लिखेंगे!
"मौलिक व अप्रकाशित"
© हरि प्रकाश दुबे
Comment
ग़ज़ल बहुत अच्छी हुई है आदरणीय जिसके लिए बधाई स्वीकारें | एक जगह मुझे थोडा संशय है कृपया मार्गदर्शन करें
लिखेंगे नहीं हम कभी झूठ बातें, ( यहाँ बातें तो बहु वचन हुआ न फिर झूठ एक वचन ऐसा क्यों ) | सादर
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