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'महब्बत कर किसी के संग हो जा'

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

हिमाक़त छोड़ दे फ़रहंग हो जा
महब्बत कर किसी के संग हो जा

ग़ज़ल मेरी सुना लहजे में अपने
मैं गूँगा हूँ मेरा आहंग हो जा

यहाँ घुट घुट के मरने से है बहतर
निकल मैदाँ में मह्व-ए-जंग हो जा

करे अपना के दुनिया फ़ख़्र जिस पर
वफ़ा का वो निराला ढंग हो जा

चढ़े इक बार जिस पर फिर न उतरे
महब्बत का तू ऐसा रंग हो जा

ये दुनिया सीधे साधों की नहीं है
उदासी छोड़ शौख़्-ओ-शंग हो जा

जुदा ता उम्र कोई कर न पाए
"समर"के जिस्म का वो अंग हो जा
-----/
फ़रहंग-दानाई- बुद्धिमानी(उर्दू की एक लुग़ात का नाम )
आहंग-आवाज़
मह्व-ए-जंग-युद्ध में डूबना(लेकिन ये युद्ध तलवार वाला नहीं )
फ़ख़्र-गर्व
शौख़-ओ-शंग-चंचल,चालाक
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 2:44pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 2:42pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 2:40pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 2:39pm
जनाब मोहित मिश्रा(मुक्त)साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 2:37pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,//सर ये महब्बत कहीं मोहब्बत तो नहीं?//
जी हाँ ये वही है, अस्ल में इसका सही तलफ़्फ़ुज़(उच्चारण)"महब्बत"ही है, जिसे हम लोग कभी 'मोहब्बत' तो कभी 'मुहब्बत' लिख देते हैं,लेकिन सही शब्द "महब्बत" ही है ।
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 2:30pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 2:28pm
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 2:26pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 24, 2017 at 10:29pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल
फरमाएँ

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 24, 2017 at 10:05pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, बहुत खूबसूरत गजल कही है आपने. बहुत मुबारकबाद कुबूलें. सादर.

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