For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लाठी के सहारे (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"थकना और छकना तो है ही, लेकिन रुकना नहीं है। आगे बढ़ने के लिए यह सब भी करना ही है।" अगले पड़ाव पर बैठ कर वह सोचने लगा।

"पहले अपनी अंदरूनी असली हालत और असली ताक़त पर ग़ौर करो, उसे बरकरार रखने, सुधारने या बढ़ाने की असली कोशिश करो!" अन्तर्मन की आवाज़ ने 'फिर से' उसे झकझोर दिया।

"असली हालत ही तो यह सब करा रही है न! यही असली ताक़त बरकरार रखने या बढ़ाने के लिए निहायत ज़रूरी है!" उसने स्वयं को तसल्ली दी।

"तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हारी हालत तो उस तज़ुर्बेकार बूढ़े इंसान जैसी है, जो लाठी और बची-खुची ज़मीं-जायदाद के भरोसे रिश्ते निभाते हुए अपनी नैया खेता है अपनों से ही कष्ट झेलते हुए?" अन्तर्मन ने फिर से उसे अंदर तक हिला दिया।

"बचा-खुचा नहीं कहो! अब भी बहुत कुछ है मेरे पास। दूसरों ने जो हमसे छीन लिया या अपनों ने जो बरबाद कर दिया, उसके अलावा भी बहुत कुछ है मेरे पास!" भरोसे के साथ उसने लम्बी सांस लेते हुए कहा- "तज़ुर्बे ही मुझे यूं विदेशों में दर-दर घुमाते हैं!"

"तुम्हारी पोटली या पिटारे में अब जो बहुत कुछ है तुम्हारे पास, वह विदेशों को बांट रहे हो या ब्लेकमेल हो रहे हो या केवल लेन-देन और व्यापार से किसी तरह स्वयं को संतुष्ट करने की सफल या असफल कोशिशें कर रहे हो?" उसके अन्तर्मन ने कटाक्ष किया।

"दौर ही ऐसा है, हालात ही ऐसे हैं कि दुनिया के साथ चलने के लिए यह सब करना ही होगा!"

"तो अब यहां इस द्वार पर किसलिए पधार रहे हो? अपने पिटारे से अपनी अमूल्य 'विरासत', 'संस्कृति', 'सम्पदा, 'प्रतिभायें' या 'तकनीकें' इनको देने के लिए या इनके पिटारे से इनकी यही या ऐसी ही चीज़ें लेने के लिए या मात्र सौदेबाज़ी के लिए!" अन्तर्मन के ये सवाल सुनकर वह स्वयं में उलझ कर रह गया।

" 'सौदेबाज़ी', 'ब्लेकमेलिंग', 'समझौते' या गड़बड़-सड़बड़ 'वैश्वीकरण' के नाम पर यह सब अपने विकास के लिए ही है या विकास के छद्म वेश में विनाश की नींव के लिए?" स्वतंत्र व परिपक्व लोकतंत्र 'भारत' स्वयं में कभी 'किसान' को देख रहा था, कभी 'जवान' को और कभी 'विज्ञान' को अपनी बची हुई पोटली रूपी पिटारे को संभालता हुआ, लेकिन विकसित कहे जाने वाले किसी देश की या फिर किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की लाठी पकड़े हुए।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 665

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 2, 2017 at 7:10pm
मेरी इस अभ्यास रचना के पटल पर शिरक़त कर रचना के अवलोकन, अनुमोदन व हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी व आदरणीय विजय निकोरे जी।
Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 9:43am

 

लघु कथा की कलम पर आपका हाथ माहिर है। बधाई, जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2017 at 7:11am
बेहतरीन कथा हार्दिक बधाई।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 30, 2017 at 11:13pm
70 से अधिक वर्षीय स्वतंत्र एवं परिपक्व लोकतांत्रिक देश के प्रतीक के रूप में पात्र और उसके अंतर्मन की बात को व्यक्त करती मेरी इस प्रतीकात्मक शैली के रचना अभ्यास पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब, आदरणीय जानकी बिष्ट वाही जी व जनाब समर कबीर साहब।
Comment by Samar kabeer on July 30, 2017 at 6:43pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,हमेशा की तरह बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Janki wahie on July 28, 2017 at 6:17pm
Iबेहतरीन कथ्य और बेहतरीन शिल्प ।हार्दिक बधाई।
Comment by Mohammed Arif on July 27, 2017 at 10:31pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी आदाब, अंतर्मन के सहारे आपने वैश्विकरण के दौर में बढ़ती विवशता को इशारों-इशारों में इंगित कर दिया । बढ़िया लघुकथा । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन।उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"जहां हम मिले थे, जहां से चले थेचलो वापसी उस डगर धीरे धीरे एक प्रभावशाली गजल हुई है आ. पूनम जी।…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई तिलकराज जी सादर अभिवादन। यह तरही से अलग है। इस पर आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा है। नेट की…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। मक्ता सुधारने का…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"तू पहले नदी  में  उतर धीरे-धीरेकटेगा तेरा फिर सफ़र धीरे-धीरे।१।*बहा ले न जाए सँभल तेज़…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"122 122 122 122  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे करेगी मुहब्बत असर धीरे धीरे 1 भरोसा नहीं…"
6 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा गिरा टूट कर हर…"
15 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"रदीफ़ क़ाफ़िया में तो ऐसा कोई बंधन नहीं है इसलिये आपका प्रश्न स्पष्ट नहीं है। "
16 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नमस्कारक्या तरही मिसरे में लिंग अनुसार बदलाव करसकते हैंक्यूंकि उसे मैं अपने अनुसार प्रयोग…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागत है।"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"यह तरही के लिए है या पृथक से?"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service