छंद – विजया घनाक्षरी(मापनीमुक्त वर्णिक)
विधान 32 वर्णों के चार समतुकांत चरण, 16 16 वर्णों यति अनिवार्य
8,8,8,8 पर यति उत्तम अंत में ललल अर्थात लघु लघु लघु या नगण अनिवार्य ।
सूखे कूप हैं इधर ,गंदे स्रोत हैं उधर,प्यासे वक़्त के अधर,मीठा नीर है किधर|
मैली गंग है उधर,देखें नेत्र ये जिधर,रोयें धरा ये अधर,जाए शीघ्र ये सुधर|
कोई भाव है न रस,कैसे शुष्क हैं उरस,वाणी नहीं है सरस,शोले रहे हैं बरस|
बातों बात ये बरस,इर्ष्या रहे हैं परस,आँखें गईं हैं तरस, पाऊँ राम के दरस|
घाटी ढूँढती चमन,भौरें ढूँढते सुमन,पाखी ढूँढते रमन, साँसें दर्द का गमन|
पूछे ये उदास मन,होते आज क्यूँ दमन, सीमा माँगती अमन,वीरों आपको नमन|
साँची सोच व कहन,ऊँचा श्रेष्ठ हो रहन,नेकी शुद्धता पहन, इच्छा करो ये वहन|
भाई, मित्र, हे बहन, ईर्ष्या द्वेष ये गहन, पूरे करो तो दहन, होंते नहीं ये सहन|.
------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० समर भाई जी आपका बहुत- बहुत शुक्रिया|
आद० मोहम्मद आरिफ जी आपको ये घनाक्षरी पसंद आई मेरा लिखा सार्थक हुआ |आपका बहुत बहुत आभार |
जैसा की आपने कहा है ये दो घनाक्षरी हैं दोनों के भाव अलग अलग है पहली घनाक्षरी --स्वभाव की प्रवृत्ति पर है चाहे वो प्रकृति की हो या मानव की
दूसरा भाव -- सुख शान्ति प्राप्ति की खोज --चाहे वो इंसान हो या कोई भी
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