2122 1212 22/112
अब यहाँ पर विगत हुआ जाये
या, जहाँ से विरत हुआ जाये
खूब दीवार बन जिये यारो
चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये
कोई खोले तो बस खला पाये
प्याज़ की सी परत हुआ जाये
ताब रख कर भी सर उठाने की
क्यों भला दंड वत हुआ जाये
आग, पानी , हवा की ले फित्रत
हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये
खूबी ए आइना बचाने को
क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ जाये
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर भाई , आपकी द्वारा दी गयी जानकारी को मै जानकारी के रूप मे स्वीकार करता हूँ । हिन्दी भाषी होने के कारण मै सौती काफिया को पहचान ही नही सकता , अतः उसे ऐसे ही स्वीकार कर के चलता हूँ .और आपसे भी निवेदन करता हूँ ।
दूसरी बात - खत , बुत , सांस ,लम्हा आदि ऐसे शब्दों के बहुवचन अलग होते हुये भी खतों , बुतों सांसों और लम्हों , नामी गिरामी शायरों के द्वारा स्वीकार किये गये हैं और इसी रूप मे उपयोग भी किये गये हैं ... लम्हात लफ़्ज़ से मै भी वाक़िफ हूँ .. मै लम्हें के रूप मे उपयोग किया हूँ ।
सटीक जानकारी और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
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