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बरखा ( सार छंद- १६,१२)


छन्न पकैया छन्न पकैया , आयी बरखा रानी
बोली बच्चों अंदर बैठो  , मेरी बूढ़ी नानी |

छन्न पकैया छन्न पकैया , भूख लगी है नानी
गरमा गरम पकौड़े खाएं , बोली गुड़ियाँ रानी |

छन्न पकैया छन्न पकैया , सबर रखो तुम मुनिया
मंडी से लाना होगा अब , प्याज , मिर्च औ धनियाँ|

छन्न पकैया छन्न पकैया , मिलकर खाओ भैया
आओ फिर हम नाचे गायें, करके ता ता थैया |

छन्न पकैया छन्न पकैया , जब जब भरता पानी
छप छप करते हैं पानी में , करते हम मनमानी |

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 20, 2017 at 8:19pm

धन्यवाद आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब |

Comment by नाथ सोनांचली on August 20, 2017 at 3:30pm
आद0 कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन, सार छंद में बरखा का बढ़िया वर्णन किया आपने, बधाई आपको
Comment by sunanda jha on August 20, 2017 at 3:06pm
वाहहहहहह आदरणीय कल्पना जी सार छंद में बहुत ही प्यारा वर्णन बरसात का ।दिल से बधाई स्वीकार करें सादर ।
Comment by Mohammed Arif on August 20, 2017 at 9:42am
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, बरखा की हलचल और प्रभाव को व्यक्त करते बहुत ही बढ़िया सार छंदों की पेशकश । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आपकी लगन रंग ला रही है । बाक़ी छंद शास्त्री अपनी अमूल्य राय देंगे ।

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