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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५१

बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़: फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन 

२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

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देख लो यारो नज़र भर अब नया मंज़र मेरा

आ गया हूँ मैं सड़क पर रास्ता है घर मेरा

 

लड़खड़ाने से लगे हैं अब तो बूढ़े पैर भी

है ख़ुदी का पीठ पर भारी बहुत पत्थर मेरा

 

जानता हूँ दिल है काहिल नफ़्स की तासीर में 

बात मेरी मानता है कब मगर नौकर मेरा

 

आसमाँ से आएगा कोई हबीब-ए-शाम-ए-ग़म

यूँ नज़र भर देखता है बाम को बिस्तर मेरा

है चराग-ए-इश्क़ की बेमायगी समझा अभी

दूद-ए-दिल उठने लगा क्यों शाम से अक्सर मेरा

 

जाँ बहक होकर वफ़ा में क़त्ल का इल्ज़ाम क्यों

बात इतनी है कि कोई ले गया पैकर मेरा

 

माँगते हैं यूँ हिसाब-ए-इश्क़ होके राहरौ

दर-ब-दर गोया लगा है इश्क़ का दफ़्तर मेरा

 

बात तो करता है लेकिन कब मिलाता है नज़र

सरगिराँ है आजकल कुछ इस कदर अफ़सर मेरा

मर गया हूँ लाश हूँ मैं अब ज़ियारत किस लिए

खींच दो चहरे पे मेरे दामन-ए-चादर मेरा

काम क्या आया है वक़्त-ए-आख़िरत ऐ दोस्तो

आन-ओ-बान-ओ-शान-ओ-शौक़त सब हुआ महशर मेरा

मुल्क़ की सरहद पे मरने वाले का ऐलान है

दुश्मनों के खूँ से होली खेलेगा किशवर मेरा

~ राज़ नवादवी 

 

मंजर- दृश्य, नज़ारा; नफ़्स- इच्छा, काम-वासना; तासीर- प्रभाव; हबीब- साथी, दोस्त; बाम- छत; राहरौ- राहगीर, पथिक; महशर- महाप्रलय, क़यामत; सरगिराँ- नाराज़; बेमायगी- बिना तेल का होना; दूद- धुआँ; जाँ बहक- मर जाना, प्राण गंवाना; पैकर- शरीर; ज़ियारत- दर्शन, दीदार, दामनेचादर- चादर का लटकता हिस्सा; किशवर- देश, मुल्क 

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 10:01am

आदरणीय महेंद्र कुमार जी, आपके मंतव्य का ह्रदय से आभार. प्रतिक्रिया में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूँगा, मैं पिछले एक सप्ताह से यात्रा में था और पोस्ट्स नहीं देख पाया था. सादर 

Comment by Mahendra Kumar on September 3, 2017 at 1:18pm

देख लो यारो नज़र भर अब नया मंज़र मेरा

आ गया हूँ मैं सड़क पर रास्ता है घर मेरा ...वाह!

मर गया हूँ लाश हूँ मैं अब ज़ियारत किस लिए

खींच दो चहरे पे मेरे दाम ...बहुत ख़ूब!

बहुत बढ़िया ग़ज़ल है आ. राज़ नवादवी जी. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by राज़ नवादवी on September 3, 2017 at 8:47am
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहेब, आपका ह्रदय से आभार। में ट्रेवल में हूँ इस कारण समय पर प्रतिक्रियाएँ नही देख पा रहा हूँ। सादर
Comment by राज़ नवादवी on September 3, 2017 at 8:45am
आदरणीय समर साहेब, आपका ह्रदय से आभार। में ट्रेवल में हूँ इस कारण समय पर प्रतिक्रियाएँ नही देख पा रहा हूँ। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2017 at 6:19pm

आ. राज भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by Samar kabeer on September 1, 2017 at 3:40pm
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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