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अना का जो खुर्शीद ढलने लगा
क़मर हसरतों का निकलने लगा
हटे मकड़ियों के वो जाले सभी
मेरा खस्ता घर भी सँभलने लगा
मुहब्बत का छोटा सा दीपक मेरा
ग़मों का अँधेरा निगलने लगा
मेरे आंसुओं की बनी झील में
पशेमान सूरज पिघलने लगा
चमन पर हुआ अब्र ज्यों महरबां
खजाँ का तभी रुख़ बदलने लगा
खुदा का करम चार हाथों से ये
सफीना मेरा आज चलने लगा
तरन्नुम में सुनकर सबा की ग़ज़ल
समंदर ख़ुशी से मचलने लगा
सदाकत का मीनार ऊँचा बहुत
जहाँ से वो बातिल फिसलने लगा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आद० डॉ० आशुतोष जी
आपको ग़ज़ल पसंद आई सतविन्द्र भैया बहुत बहुत शुक्रिया
आद० आशुतोष जी ग़ज़ल आपको पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
पशेमान =लज्जित
सूरज की ताब से घमंड का अर्थ लिया है -अर्थात आंसुओं को देखकर एक घमंडी का मन भी भी पिघल गया --इस शेर का आशय यही है
सफीना -नाव/छोटा जहाज जो पहले खुद दो हाथों से चलाती थी (अपनी गृहस्थी )साथी मिल गया तो चार हो गए हाथ -इसमें बिम्बात्मक भाव हैं .उम्मीद है अब स्पष्ट हो गए होंगे
आदरणीया राजेश जी बहुत उम्दा ग़ज़ल हुयी है
मेरे आंसुओं की बनी झील में
पशेमान सूरज पिघलने लगा
खुदा का करम चार हाथों से ये
सफीना मेरा आज चलने लगा... इन शेरो को पूरी तरह समझ नहीं पा रहा हूँ आपका मार्गदर्शन चाहिए पशेमान का अर्थ क्या होता है सादर
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