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चढ़े सूरज तलक सोए हुए हैं
किसी की याद में खोए हुए हैं
ग़ज़ल लिक्खी हुई है आंसुओं से
कहें किससे कि हम रोये हुए हैं
तभी भीगा हुआ तकिया मिला है
इसे अश्कों से हम धोये हुए हैं
कमर टूटी ज़फ़ा की चोट खाकर
मगर फिर भी वफ़ा ढोए हुए हैं
वहाँ चर्चा हमारा हो रहा है
न जाने हम कहाँ खोए हुए हैं
तुम्हारे दाग ज्यों के त्यों दिखेंगे
भले ही आईने धोए हुए हैं
चुभेंगे तुमको भी इक दिन ये कांटें
मेरी राहों में जो बोये हुए हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० डॉ० आशुतोष जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का दिल से शुक्रिया
म्हारे दाग ज्यों के त्यों दिखेंगे
भले ही आईने धोए हुए हैं
कमर टूटी ज़फ़ा की चोट खाकर
मगर फिर भी वफ़ा ढोए हुए हैं
आदरणीया राजेश जी इस उम्दा ग़ज़ल के इन शेरो के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें सदर
आद० नन्द किशोर दुबे जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ
आद० बसंत कुमार जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ
आद० सुशील सरना जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ इस सुखन नवाजी का बेहद शुक्रिया
आद० सलीम साहब आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ
आद० शिज्जू भैय्या आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ
वाह लाजबाब अशआर
चढ़े सूरज तलक सोए हुए हैं
किसी की याद में खोए हुए हैं
ग़ज़ल लिक्खी हुई है आंसुओं से
कहें किससे कि हम रोये हुए हैं
वल्लाह गज़ब के अशआर कहे हैं आपने आदरणीया राजेश कुमारी जी। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।
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