विश्वास के सतूने जब कमज़ोर होते हैं तो आस्था का शामियाना गिर ही जाता
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हमारे घर का एक कोना फिर से पूजा स्थल के रूप में तब्दील हो गया और मेरी पत्नी ने एक निस्सहाय धर्म-केन्द्रित याचिका का रूप ले लिया. घर की मुश्किलात जैसे जैसे बढ़ती गईं, वैसे वैसे पत्नी की आध्यात्मिकता ने धार्मिक आचरणों, अर्चनाओं, उपवासों इत्यादि का रुख कर लिया. भविष्य वाचकों की भविष्यवानियाँ सुनी जाने लगीं और ग्रह नक्षत्रों की गतियाँ खंगाली जाने लगीं. बात यहीं तक नहीं रुकी, तथाकथित बाबाओं, ओझाओं, मौलवियों, एवं पंडित पुरोहितों से भी मुलाकातें की गईं और उनके बताएं उपायों एवं गंडे-तावीजों को आज़माया गया. विश्वास के सतूने जब कमज़ोर होते हैं तो आस्था का शामियाना गिर ही जाता है. मगर हर तरह से आर्थिक आपदाओं से घिरी एक पतिव्रता क्या करे?
मैं जैसा था वैसा ही रहा, धार्मिक उपक्रमों से निस्पृह एवं आध्यात्मिक प्रयासों से उदासीन; हाँ, अभ्यंतर में प्रार्थनाएँ जारी रहीं और कभी कभार मालिक को अपनी ध्वस्त होती गृहस्थी का हाल लिख दिया. चिंताएं हम पति पत्नी के लिए बराबर थीं और आसन्न विपदाओं का भय भी समान. मगर ये भी सच है कि मेरे अपेक्षाकृत शांत मन में कभी कभी चिंताओं के भूचाल आते थे और एक अज्ञात विद्रोह का बिगुल बज उठता था. मगर यह सब क्षणिक था.
~ राज़ नवादवी
भोपाल २१/०९/२०१७ १२:४७ पी एम
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय जनाब समर कबीर साहब, आपकी बातों को पढ़कर बहुत हौसल अफज़ाई हुई, ख़ुदा से मेरे लिए आपकी दुआएँ मेरी ख़ुशनसीबी है. आपका मशकूर हूँ. जी आपने जैसा फरमाया है, सुतून कर लूँगा. सादर
आदरणीय बृजेश कुमार जी, आपका ह्रदय से आभार. सादर
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