For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- लिखूं सच को सच ये हुनर शेष है ( दिनेश कुमार )

122___122___122___12

लिखूँ सच को सच, ये हुनर शेष है
अभी रोशनाई में डर शेष है

क़दम उठ रहे हैं इकट्ठे मगर
दिलों के मिलन का सफ़र शेष है

बुझाओ न तुम शम्अ उम्मीद की
फ़क़त रात का इक पहर शेष है

भले उनकी दस्तार है तार तार
वो ख़ुश हैं कि काँधे पे सर शेष है

चमन में लगी आग, लगती रहे
मुझे क्या, अभी मेरा घर शेष है

दशहरा मनाने का क्या फ़ाइदा
बुराई का ख़ूँ में असर शेष है

जो हातिम सा इमदाद सबकी करे
जहाँ में कहाँ वो बशर शेष है

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 907

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:10am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. बृजेश साहब।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:07am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. गिरिराज सर जी।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:06am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. गिरिराज सर जी।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:05am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. नीरज साहब। हौसला अफ़ज़ाई वाक़ई काम आती है निरन्तर प्रयासरत रहने के लिए। हार्दिक आभार आपका। इनायत।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:01am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. गुप्ता जी। इनायत।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:00am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. निलेश सर जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 26, 2017 at 10:42pm
वाह वाह आदरणीय..क्या ही खूब ग़ज़ल हुई...सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2017 at 9:06pm

आदरणीय दिनेश भाई , खूबसूरत गज़ल कही है . बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Niraj Kumar on September 26, 2017 at 6:23pm

आदरणीय दिनेश जी,

उम्दा ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.

इस ग़ज़ल की रदीफ़ से दिनकर की एक कविता का शीर्षक ध्यान आया 'समर शेष है'.

आपकी तरही ग़ज़ल भी संकलन में देखी वो भी शानदार है.

आपके ब्लॉग पर आपकी दूसरी ग़ज़लों से होकर भी गुज़ारा. जो शेर गहरे प्रभावित करते है उनमे एक शेर ये है :

गीली मिट्टी है, शायद जड़ पकड़ भी लें

मैं आँखों में सपने बोना चाहता हूँ

इस शेर की पहली पंक्ति वही लिख सकता है जिसकी जीवन और भाषा दोनों में जड़ें गहरी हों.

लेकिन अभी ये मंजिल नहीं है. बस रुकियेगा नहीं.

ये मंजिल नहीं है ये मंजिल नहीं

अभी आगे लम्बी डगर शेष है .

शुभमस्तु पंथानः

सादर

Comment by रामबली गुप्ता on September 26, 2017 at 5:49pm
बहुत ही प्यारी ग़ज़ल हुई है भाई दिनेश कुमार जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service