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ग़ज़ल-गलतियाँ किससे नही होतीं-रामबली गुप्ता

ग़ज़ल
2122 2122 2122 212

गलतियाँ किससे नही होतीं भला संसार में
है मगर शुभ आचरण निज भूल के स्वीकार में

शून्य में सामान्यतः तो कुछ नही का बोध पर
है यहाँ क्या शेष छूटा शून्य के विस्तार में

आधुनिकता के दुशासन ने किया ऐसे हरण
द्रौपदी निर्वस्त्र है खुद कलियुगी अवतार में

सूर्य को स्वीकार गर होता न जलना साथियों
तो भला क्या वो कभी करता प्रभा संसार में

व्यर्थ ही व्याख्यान आदर्शों पे देने से भला
अनुसरण कुछ कीजिये इनका निजी व्यवहार में

लालसा दिल में यही मिल जाय वो मीठा शहद
जो मिला था माँ की लोरी थपकियों और प्यार में

प्रेम पूजा प्रेम ईश्वर प्रेम के ही पंथ सब
प्रेम ही कुरआन गीता बाइबिल के सार में

श्रम दिलों को जीतने में चाहिए उतना बली
चाहिए जितना हमें निज अहं के संहार में

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on October 1, 2017 at 10:37pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,इधर उधर की बातों पर ध्यान न दें और अभ्यास करते रहें,आपकी ग़ज़ल बहुत उम्दा है,पुनःबधाई ।
Comment by रामबली गुप्ता on September 30, 2017 at 11:43am
आदरणीय भाई नीरज जी यदि आपको मेरी रचना ग़ज़ल के हिसाब से सटीक नही लग रही तो आप इसे कोई कविता मान लीजिए। व्यर्थ ही एक ही बात को पीटने से भी क्या लाभ? मेरे मन में ऐसा कोई आग्रह नहीं कि मैं अपनी रचना को ग़ज़ल ही कहूँ। आप इसे कविता ही मानें और बताएं कि कविता के हिसाब से आपको कैसी लगी?
Comment by रामबली गुप्ता on September 30, 2017 at 10:48am
आदरणीय भाई गजेंद्र जी आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया पाकर मन आह्लादित है। बहुत बहुत आभार आपको
Comment by रामबली गुप्ता on September 30, 2017 at 10:44am
हार्दिक आभार आदरणीय भाई नीलेश जी
Comment by रामबली गुप्ता on September 30, 2017 at 10:42am
हार्दिक आभार आदरणीय गुरुदेव
Comment by रामबली गुप्ता on September 30, 2017 at 10:38am
हार्दिक आभार भाई वासुदेव अग्रवाल जी
Comment by Niraj Kumar on September 29, 2017 at 7:12pm

जनाब समर कबीर साहब, आदाब

उपदेश और बात को खुल कर कहना एक ही बात नहीं है. अपनी ग़ज़लों में हाफिज मेरठी ने 'इशारात-ओ-किनायात' का खूब इस्तेमाल किया है. बात को अलामतों और इस्तआरो के जरिये कहने से बात का जोर कम नहीं होता, बढ़ जाता है. हाफिज मेरठी का ही एक शेर है :

सूरज को दो देश निकाला दिन का किस्सा पाक़ करो

बनते हैं ऐसे मंसूबे रात के रिश्तेदारों में

सूरज, दिन और रात की अलामतों के जरिये जिनकी तरफ इशारा किया गया उन पर इसका इतना असर हुआ की उन्होंने आपातकाल के दौरान उठा के उन्हें जेल में डाल दिया था.

सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 8:40pm
धन्यवाद भाई अफ़रोज़ जी
Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 8:39pm
शुक्रिया आद0 तस्दीक अहमद भाई जी
Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 8:38pm
सादर आभार बृजेश कुमार जी

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