लघुकथा - ज़िद - -
गाँव के सरपंच बंशीलाल के बेटे शुभम की शादी शहर में रहने वाले परिवार की लड़की सुजाता से हुई।
सुजाता ने गाँव में पहली बार में कुछ परेशानियों का सामना किया तो गौने पर विदा कराने गये शुभम और उसके साथियों को बैरंग लौटा दिया। कहला दिया कि जब तक घर में शौचालय की व्यवस्था नहीं होगी, वह गांव नहीं आयेगी। शुभम भी गुस्से में धमकी देकर चला आया कि अब वह कभी भी उसे लेने नहीं आयेगा।
लेकिन धीरे धीरे सरपंच जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और सामाजिक दबाव के देखते हुए शौचालय का निर्माण शुरू कर दिया। शौचालय का निर्माण पूर्ण होते ही सरपंच ने शुभम को शहर सुजाता को लाने भेज दिया।
शुभम शहर तो आगया, मगर सुजाता के घर जाने में उसे अपनी बेइज्जती लगी। अतः वह एक होटल में ठहर गया और सुजाता के यहाँ समाचार भिजवा दिया कि वह उसे लेने आगया है वह इस होटल पर आ जाये। लेकिन सुजाता उससे भी तीन क़दम आगे थी। उसने भी खबर भेज दी कि वह घर नहीं आयेगा तो वह उसके साथ नहीं जायेगी।
बौखलाहट में शुभम एक बार फिर बैरंग लौट आया। उसने अपने पिता को बताया कि सुजाता ने आने से फिर मना कर दिया। उसके परिवार के लोग उसकी बात सुनकर ठहाका मार कर हँस पड़े। उनके बीच सुजाता भी थी। | सरपंच ने शुभम को समझाया,
"बेटा, गृहस्थी की गाड़ी ज़िद से नहीं आपसी ताल मेल से चलती है"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
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