"हाय मम्मी, कैसी है, तबियत ठीक है ना तुम्हारी और दवा रोज ले रही हो ना", रोज के यही सवाल होते थे सिम्मी के और उसका रोज का जवाब।
"अब वीडियो काल किया है तो देख ही रही है मुझे, मैं एकदम ठीक हूँ। अच्छा अभी कितना बज रहा है वहाँ पर", उसने अपनी दीवाल घड़ी को देखते हुए पूछा।
"रोज तो बताती हूँ, बस साढ़े तीन घंटे आगे चलती है घड़ी यहाँ, अभी शाम के सिर्फ सात ही बजे हैं"।
"मुझे याद नहीं रहता, हमेशा उलझ जाती हूँ कि हमारी घड़ी आगे है या तुम्हारी। और मेहमान आए कि नहीं अभी, छोटू कैसा है", उसने भी सवाल किया, वह आज भी दामाद को मेहमान ही कहती है, भले पिछले दस साल से शहर मे रह रही है।
"सब लोग बढ़िया है, तुम मेहमान कहना कब छोड़ोगी, सुनते हैं तो हंसते हंसते लोट पोट हो जाते हैं", सिम्मी ने भी एक ठहाका लगाया।
वह भी मुस्कुरा दी, और पानी पीने लगी।
"अच्छा है हम व्रत नहीं रखते हैं, अब तो यहाँ जोबर्ग मे भी हिंदुस्तानी महिलाएं ये सब खूब करने लगी हैं। मुझे भी सब हर बार टोकती हैं", सिम्मी बोली।
उसको अब याद आया, कल तो व्रत है और कामवाली भी नहीं आएगी। कितना मार खाती है यह कामवाली अपने आदमी से लेकिन फिर भी उसी की लम्बी उम्र के लिए व्रत भी रखती है|
"जिसकी मरने की भी दुआ नहीं करती, उसके उम्र का क्या सोचना। अच्छा तुम बताओ सिम्मी, सच में कभी तुम्हारा मन नहीं करता यह सब करने का", उसने गहरी सांस लेते हुए पूछा|
एक ठहाका लगाया सिम्मी ने और मुस्कुराते हुए बोली "कमाल की बात करती हो मम्मी, मैं और यह सब| पापा का किस्सा न तो तुम भूल सकती हो और न मैं, किस हाल में छोड़ कर भाग गए थे हमको और क्या क्या नहीं कहा था तुम्हारे चरित्र के बारे में| और तुम तो हर पूजा और हर व्रत करती थी उनके लिए"|
"लेकिन हर आदमी एक जैसा तो नहीं होता ना, अब मेहमान को ही देख लो| मेरी तरफ से कोई पाबन्दी नहीं है इसकी, बाकी तुम खुद ही समझदार हो", उसने कुछ सोचते हुए कहा|
"छोडो इन बातों को, वैसे कल तो मैं चिकेन बना रही हूँ, तुम क्या खाओगी", सिम्मी ने पूछा|
"अरे कामवाली कल नहीं आएगी, उसने व्रत रखा हुआ है| लगता है ऐसे ही कुछ खा कर दिन बिताना होगा", उसने मुस्कुराते हुए कहा|
"देखना कहीं बिना खाये ही मत रह जाना वर्ना किसी की उम्र बढ़ जाएगी", सिम्मी ने भी कस के ठहाका लगाया|
मुस्कुराते हुए उसने कहा "मेहमान को मेरा आशीर्वाद कहना और छोटू को प्यार देना| अब एक बार यहाँ कुछ दिनों के लिए आने का भी सोचो"|
"जरूर मम्मी, अपना ध्यान रखना", कहते हुए सिम्मी ने फोन रख दिया| वह भी सर के नीचे हाथ रख कर आंखे मूंदे बिस्तर पर लेट गयी|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बढ़िया कथा हुई है आदरणीय विनय सर | सच में किसीकी गलती होती है और कोई भुगत ता है और दिल से सम्मान भी चला जाता है पीछे बहुत सारे निशान छोड़कर | हार्दिक बधाई आपको इस कथा के लिए |
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