For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सिसकते बल्ब (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"कमली, तू तो करवा चौथ के दूसरे दिन भी काफी सुंदर लग रही है, सजी-धजी सी!"
मेम साहब की यह टिप्पणी सुनकर कमली उनके कमरे में और अच्छी तरह से झाड़ू लगाने लगी।
"छोड़ ये झाड़ू-पोंछा.. आ बैठ यहां!" कमली का हाथ खींच कर उसे सोफे पर बैठा कर मेम साहब ने पूछा - "सच, बहुत सुंदर और ख़ुश दिख रही है तू!"
"पर आपके सामने हम कहां!"
"चुप्प! छोड़ ऐसी बातें! अच्छा ये बता, तू कितने वाट की है?"
"वाट!"
"हां, कितना वोल्टेज है तुझ में?" इतना कहकर मेम साहब फफक-फफक कर रोने लगी।
उनके ही पल्लू से उनके आंसू पोंछकर कमली ने पूछा- "क्यूं, कल करवा चौथ पर भी साहब ने कुछ बक दिया क्या?"
सिसकते हुए मेम साहब बोलीं - "व्रत खुलवाते ही चांद को देखकर कहने लगे कि क्या ग़ज़ब की एल.ई.डी. है! फिर मैंने पूछा कि मैं क्या हूं? तो बोले - बल्ब चालीस वाट की!"
मालकिन को फिर से रोते देख कमली अपने गदराये बदन का निरीक्षण सा करने लगी।
कमली को बाहों में समेट कर मेम साहब ने पूछा -" अच्छा ये बता, कल रात तुझे अपने आदमी से क्या मिला? जली या बिना जले बुझ गई?"
अपने लम्बे घने काले बालों वाली मोटी चोटियां झटके से लहराकर कमली ने सब कुछ कह दिया और मेम साहब उसे देखकर जल-जल कर बुझीं। सोने की नई चैन उतार कर उन्होंने अपने आलीशान बिस्तर पर फैंक दी। बीती रात याद करते हुए बोलीं-"कमली, कल तो यहां बल्ब जलते और बुझते ही रहे।" सिसकियां फिर से शुरू हो गईं।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 4:19pm
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर वक़्त देकर अनुमोदन व हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब, जनाब सलीम रज़ा रीवा साहब और आदरणिया कल्पना भट्ट जी।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 11, 2017 at 8:29pm
जनाब उस्मानी साहब,
ख़ूबसूरत लघुकथा के लिए मुबारक़बाद.
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 3:15pm

उम्दा लघुकथा ,हार्दिक बधाई |

Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 11:33am
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service