फइलात -फ़ाइलातुन -फइलात -फ़ाइलातुन
 सरे राह उसने देखा जो मुझे पलट पलट के |
 उसी दिन से रह गया हूँ मैं मुआशरे से कटके |
अभी रूठ कर उठे थे कि कड़क के बर्क़ चमकी 
 मेरी बाहों में वो सहमे हुए आ गये सिमट के |
बड़ी रात जा चुकी है कोई ख़ाक आएगा अब 
 शबे ग़म मेरी इधर आ तुझे रो लूँ मैं लिपट के |
जो ग़रीब हौसला है उसे होगा कुछ न हासिल 
 वही जाम पा सकेगा जो उठा ले ख़ुद झपट के |
जिन्हें गुमरही का डर था वही पा गये हैं मंज़िल 
 जिन्हें ज़ोमे आगही था वही कारवाँ हैं भटके |
मेरे साथ गामज़न है मेरा गर्दिशे मुक़द्दर 
 मेरे हमसफ़र तू चलना ज़रा दूर मुझ से हटके |
जिन्हें सुनके दोस्तों ने दी थी ख़ूब दाद तस्दीक़
 वही शेर बे तहाशा मेरे नाक़दो को खटके |
मुआशरा--- समाज , गुम रही --भटकने 
 ज़ोम --गुमान , आगही--जानकारी 
 नाक़िद --तन्क़ीद करने वाले
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब आशुतोष साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
वाह वा ..आ. तस्दीक साहब 
 उम्दा अशआर हैं..
 बधाई
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