आँसुओं-सिंची आस्था
हर धूल भरी पगडण्डी पर अब मानो
फैले हैं पूर्तिहीन स्वप्नों के श्मशान
अकुलाते अनुभवों के कांटेदार गहन सत्य
तकलीफ़ भरे गड्ढों में चिन्ता की छायाएँ
रहस्यात्मक अहातों के उस पार
अन्धकार-विवरों में होगी यकीनन
अनबूझे सपनों की अनबूझी बेचैनी
लौट आएँगी अनायास असंतोष भरी
स्वाभाविक हमारी पुरानी वेदनाएँ
इस पर भी अनजाने-अनपहचाने, प्रिय
न जाने किस-किस आकाशीय मार्ग से
चली आती हैं झोली में सहज कभी-कभार
अपरिभाषणीये कोमल मामूली सचाईयाँ
हृदय-प्राण-सी सुकुमार खुशियाँ अपार
हमारे ज़िद्दी स्वप्नों के अर्थ व्यर्थ
किसी टूटी-बिखरी तस्वीर के टुकड़ों-से सही
धूप-तपी राहों पर धूल के कितने बगूले सही
पर उँंगली-पकड़ चलते बच्चे-सा विश्वास है मुझको
आज भी "तुम्हारे" सहज भोले विश्वास पर, प्रिय
प्राण-प्रिय, मेरी प्राण-स्वप्न
आ चल, मेरे साथ चल
अभी बाकी है मेरा पगलाया विश्वास
सुन मेरी बेचैन ज़िन्दगी
तू अभी किवाड़ बन्द न कर
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
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