ख़्यालों में गिरफ़्तार
गम्भीर उदास
अपना सिर टेक कर
इ-त-नी पास
तुम इतनी पास
तो कभी नहीं बैठती थी
फिर आज...?
मिलने पर
न स्वागत
न शिकायत
न कोई बात
अपने में ही सोचती-सी ठहरी
धड़कन की खलबली में भी
तुम इतनी आत्मीय ...
मेरे बालों की अव्यवस्था को ठेलती
कभी शाम के मौन में शाम की
निस्तब्धता को पढ़ती
शांत पलकें, अब अलंकार-सी
जागती-सी सोचती, कुछ खोजती
पूछती हैं कोई शरारत भरा सवाल
मेरी आँखों से मेरी आँखों में, ..बस
कभी मुंदती, कभी खुलती पलकें तुम्हारी
शिशु-सी मुस्कान, कि मानो ईश्वर हो पास
आसमान भी अब बिना सरहद का लगता
हम दोनों पर इ-त-ना महरबान ... सुनो
कहता है एक बात, एक बात कहता है
स्नेह की महक में विकसित फूलों-सी तुम
आज यूँ ही मेरी धड़कन पर सिर टेके रहो
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-- विजय निकोर
Comment
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।
देर से आया हूँ, क्षमाप्रार्थी हूँ।
// भावनाओ का समुंदर उड़ेल दिया आपने //
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिहं जी।
//मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढता ही चला गया। कि-त-ना का नवीन प्रयोग मुझे बहुत भाया//
आपने मेरे प्रयास को सफ़ल किया है, आदरणीय सुशील जी। हार्दिक आभार।
//बहुत ख़ूबसूरत अहसासात से सजी//
आपने म्रेरा मनोबल बढ़ाया है। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय समर जी।
//सुंदर अहसासों की पावन बगिया //
इस रचना को इन शब्दों से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी।
अच्छी भावपूर्ण कविता है आ. विजय निकोर जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
कभी मुंदती, कभी खुलती पलकें तुम्हारी
शिशु-सी मुस्कान, कि मानो ईश्वर हो पास
आसमान भी अब बिना सरहद का लगता
हम दोनों पर इ-त-ना महरबान ... सुनो
कहता है एक बात, एक बात कहता है
स्नेह की महक में विकसित फूलों-सी तुम
आज यूँ ही मेरी धड़कन पर सिर टेके रहो
वाह आदरणीय मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढता ही चला गया। कि-त-ना का नवीन प्रयोग मुझे बहुत भाया। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।
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