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अंगारो से प्रीत निभाया करता हूँ ।
ख्वाब जलाकर रोज़ उजाला करता हूँ।।
एक झलक की ख्वाहिश लेकर मुद्दत से ।
मैं बादल में चांद निहारा करता हूँ ।।
एक लहर आती है सब बह जाता है ।
रेत पे जब जब महल बनाया करता हूँ ।।
शेर मेरे आबाद हुए एहसान तेरा ।
मैं ग़ज़लों में अक्स उतारा करता हूँ ।।
दर्द कहीं जाहिर न हो जाये मुझसे ।
हंस कर ग़म का राज छुपाया करता हूँ ।।
पूछ न मुझसे आज मुहब्बत की बातें ।
याद में तेरे वक्त गुजारा करता हूँ ।।
सब कुछ सुनकर बात वही वो टाल रहा ।
जिन बातों पर रोज इशारा करता हूँ ।।
फिर रिश्तों के बीच मिली हैं दीवारें ।
जिनको मैं दिन रात गिराया करता हूँ।।
मेरी उल्फ़त पर हँसते हैं लोग यहां ।
आसमान की हसरत पाला करता हूं ।।
अक्सर नंगे हो जाते हैं पाव मेरे ।
जब चादर से पांव निकाला करता हूँ ।।
तूफानों में साथ छोड़ उड़ जाएंगे ।
जिन पत्तों के साथ बसेरा करता हूँ ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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