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बेबस पे नज़र से वार न कर

22112 22112 22112 22112


ये इश्क़ कहीं बदनाम न हो इतना तू मेरा दीदार न कर ।
ऐ जाने वफ़ा ऐ जाने ज़िगर बेबस पे नज़र से वार न कर ।।

इन शोख अदाओं से न अभी इतरा के चलो लहरा के चलो।
यह उम्र बड़ी कमसिन है सनम
ख़ंजर पे अभी तू धार न कर ।।


हैं दफ़्न यहाँ पर राज़ कई इस कब्र पे लिक्खी बात तो पढ़ ।
अब वक्त गया अब उम्र ढली अब और नया इजहार न कर ।।

चेहरे की लकीरों को जो पढ़ा तो राज हुआ मालूम मुझे । दिल मांग गया तुझसे है कोई यह बात अभी इनकार न कर ।।

सब दर्द फ़साने बीत गए वो रात गई वो बात गई ।।
लिक्खा था जो खत ऐ इश्क़ तुझे उस ख़त को मेरे अखबार न कर ।।

जज़्बात बहे अश्कों में यहां बेफिक्र तमाशा देख रहे ।
ये आह जला सकती है तुझे लहजे को अभी खुद्दार न कर ।।


कुछ ख्वाब सजाकर बैठ गया फितरत ने किया मजबूर उसे ।
मासूम है दीवाने की नज़र हसरत से अभी तू ख्वार न कर ।।

इनकार कभी इकरार कभी गफ़लत में गुज़रती उम्र यहां ।
मफ़हूम बड़े उलझे से मिले ऐ चाँद गमे बीमार न कर ।।

कुछ ख्वाब सजाकर बैठ गया फितरत ने किया मजबूर उसे ।
मासूम है दीवाने की नज़र हसरत को अभी तू ख्वार न कर ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 10, 2017 at 11:56am
बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय त्रिपाठी जी..हार्दिक बधाई
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 10:30pm
आ0 अफरोज सहर साहब सप्रेम आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 10:29pm
सादर नमन आ0 कबीर सर अभी ठीक करता हूँ ।
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 9:49pm
आदरणीय नवीन मणि जी इस रचना पर बहुत बधाई आपको,,आदरणीय समर साहिब की सलाह पर गौ़र कीजिएगा,,सादर
Comment by Samar kabeer on November 8, 2017 at 9:34pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
दूसरे शैर में शुतरगुर्बा का दोष है,ऊला में 'चलो'बहुवचन और सानी में 'कर'एक वचन,देखियेगा ।
कुछ अशआर में शिल्प कमज़ोर है ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 12:29pm
आ0 मुहम्मद आरिफ साहब बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 12:28pm
आ0 सालिम राजा रेवा साहब तहे दिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 12:27pm
आ0 राम अवध विश्वकर्मा साहब सादर आभार
Comment by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 10:23am
आ. ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
Comment by Mohammed Arif on November 8, 2017 at 8:08am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बेहतरीन अश'आरों से सजी ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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