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उनका बस इन्तिज़ार अच्छा था-ग़ज़ल

2122 1212 22/112

उनका बस इन्तिज़ार अच्छा था
यार मैं बे क़रार अच्छा था

गम रहा जो क़रीब दिल के बहुत
वो ख़ुशी से हज़ार अच्छा था

कौन कातिल था देख पाया नहीं
तेज़ नजरों का वार अच्छा था

मेरी उम्मीद तो रही कायम
तेरा झूठा ही प्यार अच्छा था

सौदा दिल का किया हमेशा ही
उनका वो रोज़गार अच्छा था

देख कर जीत की खुशी उनकी
हारना उनसे यार अच्छा था

खीझ कर माँ पसीजना तेरा
मार पर वो दुलार अच्छा था।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mohammed Arif on November 10, 2017 at 2:01pm
खीझ कर माँ पसीजना तेरा
मार पर वो दुलार अच्छा था। बहुत ख़ूब! बहुत ख़ूब ! माँ को सब अख़्तियार होता है जनाब ।
डहुत अच्छी ग़ज़ल आदरणीय सतविंद्र जी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on November 10, 2017 at 2:01pm
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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