2122 1122 1122 22
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मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा
भूल कर शिकवे-गिले दिल से लगाना होगा
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जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले
उन चराग़ों को हवाओ से बचाना होगा
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जिसकी ख़ुशबू से महक जाए ये दुनिया सारी
फूल गुलशन में कोई ऐसा खिलाना होगा
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मैं जहाँ छोड़ के आ जाऊंगा तेरी ख़ातिर
शर्त ये है कि मेरा साथ निभाना होगा
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दिल के रिश्तों को अगर प्यार से जोड़ा जाए
एक बंधन में बँधा सारा ज़माना होगा
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कोई प्यारी सी ग़ज़ल कहना अगर चाहो तो
इश्क़ में डूबे ख़्यालात को लाना होगा
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चाहते हो जो मिटे सब के दिलों से नफ़रत
दुश्मनों को भी रज़ा दोस्त बनाना होगा
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"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद स्वीकार कीजिये आसलिम रज़ा साहिब |
वाह वाह बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल ,,, सभी अशआर एक से बढ़कर एक ,,,बहुत बधाई आपको आदरणीय सलीम रज़ा रीवा जी
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