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अबोले स्वर ...

कुछ शब्दों को
मौन रहने दो
मौन को भी तो
कुछ कहने दो
कोशिश करके देखना
एकांत पलों में
मौन तुम्हारे कानों में
वो कह जाएगा
जो तुम कह न सके
वो धड़कनों की उलझनें
वो अधरों की सलवटों में छुपी
मिलन के अनुरोध की याचना
वो अंधेरों में
जलती दीपक की लौ में
इकरार से शरमाना
बताओ भला
कैसे शब्दों से व्यक्त कर पाओगी
हाँ मगर
मौन रह कर
तुम सब कह जाओगी
चुप रह कर भी
अपनी साँसों से
मेरी साँसों की देह बन जाओगी
ज़िंदगी को
जीने के
अबोले स्वर दे जाओगी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 2, 2017 at 2:34pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी, प्रस्तुति आपकी मनोहारी प्रशंसा की आभारी है।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 30, 2017 at 7:46pm
आ. भाई सुशील जी सुंदर कविता हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by Sushil Sarna on November 30, 2017 at 12:35pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब . प्रस्तुति आपकी मनोहारी प्रशंसा की आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on November 30, 2017 at 12:35pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब , आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय प्रशंसा से सम्मानित करने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on November 28, 2017 at 5:18pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुतु उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on November 28, 2017 at 7:50am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,
सच कहा है आपने कुछ तो मौन को कहने दो । आज हम अपने भीतर की मौन वाणी सुनने को कहाँ तैयार हैं । मौन की वाणी ही सबसे अच्छी वाणी होती है । बहुत ही सुंदर कवीता पर बधाई.स्वीकार करें ।

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