मैं कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं,
भेद-भाव के दरया को,
पाटने की कोशिश में,
सूरज के घर में चाॅंद का,
संदेशा लेकर जाता हॅूं, हाॅं,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।
खुशियों को ढ़ूंढ़ने निकला हॅूं,
मिल भी गयी दुखदायी खुशी,
दुखदायी खुशी के चक्कर में,
हसीन गम को भूल जाता हॅूं।, हाॅं,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।
ऐशो-आराम की जिंदगी मिली है,
आराम से सोता पर क्या करूॅं,
पहले हजारों अर्धनिद्रा से ग्रसित,
बांधवों को सुलाता हॅूं, हाॅं,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।
कार्यों को करने की प्रेरणा दी मैंने,
कई सलाह भी दीं मैंने,
पर खुद काम से जी चुराता हॅूं।,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।
जिसकी मदद से पहुंचा इस मुकाम पे,
वही मेरे हाथ जोड़े खड़ा है,
मैं खुश मूढ़! एहसानों का बदला,
इस तरह चुकाता हॅूं, हाॅं,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।
तुम्हारी दी इज्जत से रहा हॅूं।
दिखावे की जिंदगी भी है मेरे पास,
अपमान भी करता हॅूं तुम्हारा,
झूठे अहम के वश में,
अपनी हैसियत भूल जाता हॅूं।
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं,
दुनिया में शिकायतों का,
सिलसिला चलता ही है,
मैंने बहुत शिकायतें की हैं तुम्हारी,
अब मुआफीनामा भी लिखता हॅूं, हाॅं
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय दादा समर कबीर जी सादर प्रणाम। आपके मार्गदर्शन का कोटिशः आभार। इसी तरह मुझ पर अपना आशीर्वाद बनाये रखें।
जनाब मनोज कुमार जी आदाब,कविता का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'भेद भाव की दरिया को--"भेद भाव के दरया को"
'ऐषो'---"ऐशो"
'कई सलाह भी दिए मैंने'---"कई सलाह भी दीं मैंने"
'अपमान भी करता हूँ तुम्हारी'---"अपमान भी करता हूँ तुम्हारा"
'अब माफीनामा भी फरमाता हूँ'---"अब मुआफ़ी नामा भी लिखता हूँ"
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