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ग़ज़ल- आज फिर उसने कुछ कहा मुझसे

२१२२ १२१२ २२

आज फिर उसने कुछ कहा मुझसे।
आज फिर उसने कुछ सुना मुझसे।।

बाद मुद्दत के आज बिफ़रा था।
आज दिल खोल कर लड़ा मुझसे।।

जिसकी क़ुर्बत में शाम कटनी थी।
हो गया था वही ख़फ़ा मुझसे।।

दूर दिल से हुए सभी शिकवे।
टूट कर ऐसे वो मिला मुझसे।।

दरमियाँ है फ़क़त मुहब्बत ही।
अब कोई भी नहीं गिला मुझसे।।

चांद तारे या वो फ़लक सारा।
बोल क्या चाहिए ? बता मुझसे।।

क़ुर्बत= सामीप्य
फ़लक= आसमान

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Manoj kumar shrivastava on December 4, 2017 at 12:29pm
बहुत ही खूबसूरत रचना है आदरणीय पवन मिश्र जी, कोटिशः बधाइयाँ स्वीकार करें।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 4, 2017 at 11:40am

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल |मुबारकबाद पेश करता हूँ। स्वीकार करें 

Comment by डॉ पवन मिश्र on December 3, 2017 at 5:44pm
जनाब आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, उत्साहवर्धन के लिये सादर धन्यवाद। अरकान न लिखने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ, २१२२ १२१२ २२ का प्रयास था
Comment by डॉ पवन मिश्र on December 3, 2017 at 5:43pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, हृदयतल से आपका आभार
Comment by Mohammed Arif on December 3, 2017 at 5:38pm
आलरणीय पवन मिश्र जी आदाब,
बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र में सादगी । हर शे'र उम्दा । लेकिन आपने ग़ज़ल के अर्कान नहीं लिखे हैं । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by नाथ सोनांचली on December 3, 2017 at 3:38pm
आद0 पवन मिश्र जी सादर अभिवादन, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने,बहुत खूब।
जिसकी क़ुर्बत में शाम कटनी थी।
हो गया था वही ख़फ़ा मुझसे।।
बाकमाल, बहुत बढ़िया। आपको शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।

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