प्रश्न चिन्ह - लघुकथा –
आज छुट्टी थी तो सतीश घर के पिछवाड़े लॉन में अपने दोनों बच्चों के साथ बेडमिंटन खेल रहा था।
"सतीश,…. सतीश,…. पता नहीं बाहर क्या कर रहे हो? दो तीन बार आवाज़ दी, सुनते ही नहीं हो"?
"क्या हुआ क्यों चिल्ला रही हो सुधा जी। कोई इमरजेंसी आ गयी क्या"?
"हाँ, यही समझ लो"।
"क्या हुआ| कुछ बोलो भी"?
"पैथोलोजी लैब वाला आया था, मम्मी की ब्लड रिपोर्ट दे गया है"।
सतीश ने उत्सुकता से पूछा,"क्या लिखा है"?
"ब्लड कैंसर लिखा है"।
"ओह नो, यह कैसे हो गया"?
"इसीलिये शायद उनको बार बार बुखार आ जाता है? अब उनका रहने का कहीं और इंतज़ाम करना होगा"।
"कैसी बेवकूफ़ी की बात करती हो।मेरे अलावा उनका इस दुनियाँ में है ही कौन"?
"वृद्धाश्रम तो हैं"।
"असंभव, मेरे होते हुए मेरी माँ और कहीं नहीं रहेगी"।
"ठीक है तो मैं यहाँ नहीं रहूंगी। बच्चे दिन रात दादी से ही चिपके रहते हैं| ये भी बीमार हो जायेंगे"।
"सुधा, यह कोई छूत की बीमारी नहीं है। बच्चे तो माँ की जान हैं।बच्चे चले गये तो माँ दो चार महीने में ही मर जायेगी”|
”वैसे भी वे तो इस बीमारी से चार छह महीने में ही मर जायेंगी”|
“तो जब तक जीवित हैं तब तक तो उन्हें बच्चों के साथ रह लेने दो”|
"सतीश, मैं किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लूंगी। बच्चे नासमझ हैं। मम्मी के साथ खाते हैं, खेलते हैं और उन्हीं के साथसोते हैं। मैं एक मिनट भी यहाँ नहीं रहूंगी"।
"फिर कहाँ रहोगी"?
"अपनी माँ के साथ। वहाँ से बच्चों का स्कूल भी पास है"।
पति पत्नी के बीच एक घंटे तक चली बहस के बाद दोनों माँ को वृद्धाश्रम भेजने को राजी हो गये। माँ को भी समझा बुझाकर, यह कह कर तैयार कर लिया कि आपकी वज़ह से बच्चे पढ़ नहीं पाते और बिगड़ते जा रहे हैं।हम हर रविवार को उन्हें आपसे मिलाने लाया करेंगे।
सुधा ने फटाफट माँ की पैकिंग कर दी । वे लोग सामान उठा कर चलने को थे कि डोरवेल बजी।सुधा ने द्वार खोला। सामने पैथोलोजी लेब का कर्मचारी खड़ा था,
"मैडम, क्षमा कीजिये। बहुत बड़ी भूल हो गयी। सुबह जो ब्लड रिपोर्ट दी थी, वह आपकी माताजी की नहीं थी। एक जैसे नाम होने की वज़ह से ऐसी भूल होगयी। आपकी माताजी की रिपोर्ट यह है"।
"इस रिपोर्ट में क्या आया है"?
"उनकी रिपोर्ट सामान्य है “।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।
आज भी बीमारी को लेकर जागरूकता का अभाव रिश्ते में तल्ख़ी बडा देता है ।कथा के जरिये अापने गंभीर विषय उठाया है बधाई आद० तेजवीरसिंह जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।
जनाब तेजवीर सिंह साहिब आदाब,बहुत सुंदर और सधी हुई लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी।
कहानी अंत में प्रश्न छोड़ती है अब माँ का क्या ? समाजिक रिश्तों में ,विशेष तौर पर बूढ़े माँ-बाप को बोझ,अछूत समझने वाली पढ़ी लिखी पर लघु मानसिकता को चिन्हित करती अच्छी लघुकथा पर साधुवाद
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।आपकी विश्लेषणात्मक टिप्पणी मेरे लिये बेहद उत्साह वर्धक है।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन और कसावट वाली लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
प्रश्न छोड़ती बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह जी। ईश्वर किसी भी तरह परीक्षा ले सकता है, किसी भी तरह पीड़ितों की परेशानी से आगाह करा सकता है। यहां रिपोर्ट बदलवाकर सच्चाई से रूबरू कराया गया है आइने दिखाने के लिए, सबक़ देने के लिए।
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