For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जैसे ही आशिया घर में घुसी उसे चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ आयी. चारो तरफ देखते हुए उसकी नज़र किनारे मेज पर रखे एक पिंजरे पर पड़ी जिसमें कई सारे रंगीन पक्षी कूद फांद कर रहे थे. उसने उछलते हुए पिंजरे की तरफ रुख किया और जब तक वह पिंजरे के पास पहुंचती, सामने से अब्बू आते दिखे.
"कितने प्यारे पक्षी हैं न आशिया, तुम्हारे लिए ही लाये हैं मैंने", अब्बू ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा.
आशिया ने हँसते हुए अब्बू को शुक्रिया कहा और पिंजरे के पास खड़ी हो गयी. एक से एक खूबसूरत और प्यारे पक्षी, उसे लगा जैसे सारे जहाँ की खुशियां उसे मिल गयी हो.
वह खड़ी खड़ी उनको देखकर प्रसन्न हो रही थी कि उसके कानों में अब्बू की आवाज़ आयी "इतनी देर लगती है चाय लाने में, किसी भी काम को तो ठीक से किया करो".
उसने पलट कर देखा, अम्मी मायूस सी चाय का प्याला लेकर खड़ी थीं. कल रात की बात भी उसे याद आ गयी जब अब्बू ने खाने के लिए अम्मी को बेतरह डांटा था. अम्मी हमेशा की तरह चुपचाप प्याली रखकर वापस जाने लगीं. जब से उसे याद था, कभी भी अम्मी ने अब्बू की किसी बात का विरोध नहीं किया था और उनकी हर फटकार को वह चुपचाप सह लेती थीं. एक बार उसने कहा भी था कि आप ये सब चुपचाप क्यूँ सह लेती हैं तो अम्मी ने फीकी हंसी हँसते हुए बात टाल दी थी.
उसने एक नज़र वापस पिंजरे में फड़फड़ा रही चिड़ियों को देखा और पिंजरा उठाकर बाहर निकल गयी. पिंजरे से चिड़ियों को उड़ाते हुए उसके दिमाग में अम्मी का मुस्कुराता चेहरा तैर रहा था.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 794

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on December 19, 2017 at 3:41pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी इस सुझाव के लिए

Comment by विनय कुमार on December 19, 2017 at 3:40pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सुशील सरना जी

Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2017 at 9:05pm

बढ़िया लघुकथा है आ. विनय जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.

//कूद फांद कर रहे थे// "कूद-फांद रहे थे"

सादर.

Comment by Sushil Sarna on December 17, 2017 at 6:50pm
Waaaaaaaah bahut sundr laghu katha haardik badhaaèeeeeeeeeee sir
Comment by विनय कुमार on December 16, 2017 at 6:16pm

इस उत्साह बढाती टिप्पणी और रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहतरम विजय निकोरे साहब

Comment by विनय कुमार on December 16, 2017 at 6:15pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहतरम समर कबीर साहब

Comment by vijay nikore on December 16, 2017 at 5:40pm

//उसने कहा भी था कि आप ये सब चुपचाप क्यूँ सह लेती हैं तो अम्मी ने फीकी हंसी हँसते हुए बात टाल दी थी.
उसने एक नज़र वापस पिंजरे में फड़फड़ा रही चिड़ियों को देखा और पिंजरा उठाकर बाहर निकल गयी. पिंजरे से चिड़ियों को उड़ाते हुए उसके दिमाग में अम्मी का मुस्कुराता चेहरा तैर रहा था.//

लघु कथा में जिस बिन्दु को आप सामने लाना चाहते हैं, इन पंक्तिओं के ्माध्यम आप उसमें बिककुल सफ़ल हुए हैं, आदरणीय विनय कुमार जी। बहुत ही अच्छी लघु कथा। बधाई।

Comment by Samar kabeer on December 16, 2017 at 5:06pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,बढ़िया लघुकथा, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by विनय कुमार on December 15, 2017 at 6:42pm

इस उत्साह बढ़ाने वाली टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी

Comment by विनय कुमार on December 15, 2017 at 6:41pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service