सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं
यह अलग बात है दुनिया में' वो मशहूर नहीं
प्यार करता हूँ’ मैं’ पागल की’ तरह पर क्या’ करूँ
हर समय प्यार जताना उसे’ मंज़ूर नहीं |
सांसदों में अभी’ दागी हैं’ बहुत से नेता
दाग धोना बड़ा’ दू:साध्य है’, नासूर नहीं |
चाह ऐसी कि सज़ा सबको’ मिले जो दोषी
पर सज़ा सबको’ मिले ऐसा’ भी’ दस्तूर नहीं |
लोक सरकार अभी, राज है’ जनता का यह
हैं सभी स्वामी’ यहाँ ,कोई’ भी’ मजदूर नहीं |
देखने में तो'' महरबां लगे सारे नेता
किन्तु दिल से तो' को’ई भी कभी' अक्रूर नहीं |
थाम कर स्वांस प्रतीक्षा की’ है’ अच्छे दिन का
की है’ जो कोशिशें’ लगता है’ वो’ दिन दूर नहीं |
बन सितारा यहीं ‘काली’ कि गगन नाप लिया
आफताबी है’ चमक पर कभी मगरूर नहीं |
‘अक्रूर= दयाबान, कृपालु
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
ग़ज़ल पर शिरकत करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आ लक्षण धामी जी
ग़ज़ल पर शिरकत करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आ नवीन मणि जी
हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आ सतविंदर कुमार जी
हार्दिक बधाई ।
वाह बहुत खूब । आ0 समर साहब की इस्लाह कीमती है ।
आद कालीपद प्रसाद मंडलजी हार्दिक बधाई स्वीकारें इस गजल के लिए
आ सलीम रज़ा रेवा साहिब ,आदाब , ग़ज़ल पर शिरकत करने और हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय तस्दीक अहमद साहिब , आदाब आपने मेरा काम आसान कर दिया | पता नही" नूर " शब्द मेरे दिमाग में आया क्यों नहीं | आपके सुझाव पर विचार करता हूँ | इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया | आदाब
आदरणीय समीर कबीर साहिब , आदाब ,ग़ज़ल को गहराई से विश्लेषण करने और रचनात्मक सुझाव देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया | वैसे मतले में मुझे भी संदेह था पर उपयुक्त शब्द नहीं मिल रहा था | फिर कोशिश करता हूँ | आदाब
आ मोहम्मद आरिफ जी आदाब ग़ज़ल पर शिरकत करने और हौसला अफजाई करने लिए तहे दिल से शुक्रिया
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