काफिया : आत ; रदीफ़ : चाहिए
बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२
मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए
कैसे बने हबीब मुलाक़ात चाहिए |
वादा निभाने’ में तुझे’ दिन रात चाहिए
हर क्षेत्र में विकास का’ इस्बात चाहिए |
आतंकबाद पल रहा’ है सीमा’ पार में
जासूसी’ करने’ एक अविख्यात चाहिए |
तू लाख कर प्रयास नही पा सकेगा’ रब
भगवान को विशेष मनाजात चाहिए |
लातों के’ भूत मानता कब सौम्य बात को
आतंक का अनीफ मकाफ़ात चाहिए |
परिवार शह्र में जो भी बेघर हैं’ घर मिले
तब शह्र में अनेक मकानात चाहिए |
मदहोश हैं चुनाव ख़ुशी में, मगन सभी
हर गाँव एक एक खराबात चाहिए |
नेतायों’ को सुधारने के वास्ते बना
इस कोर्ट का कठोर अशनिपात चाहिए |
शब्दार्थ
मकालात=गूफ्तगू ,बातचीते ( ब ब )
इस्बात= सबूत
अविख्यात =जो ख्याति प्राप्त न हो
मनाजात=ईश प्रार्थना, पूजा
अनीफ –तेज; मकाफात- प्रतिकार
मकानात-मकान (ब ब )
खराबात=मयखाना
अशनिपात=वज्रपात\
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ समर कबीर साहिब आदाब , जी एडिट कर देता हूँ |
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब, इस ग़ज़ल को ऐडिट करें,और अर्थ अंत में लिखें ।
आ. भाई कालीपद जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
आ मोहम्मद आरिफ जी आदाब , मैं शब्दार्थ आखिर में ही लिखता था , मैंने सोचा साथ में लिखने सी पढने में आसानी होगी | खैर ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति के लिए तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब,
सामयिक शे'र से भरपूर बेहतरीन ग़ज़ल । दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । शब्दार्थ आपको ग़ज़ल समाप्ति उपरांत लिखने थे । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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