22 22 22 22 22 2
जो अपने माँ-बाप के दिल को दुखाएगा
चैन-ओ- सुकूँ वो जीवन भर ना पाएगा
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हक़ बातें तू हरगिज़ ना कह पाएगा
अहसानों के तले अगर दब जाएगा
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उस दिन दुनिया ख़ुशिओं से भर जाएगी
जिस दिन प्रीतम लौट के घर को आएगा
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भूँखा -प्यासा जब देखेगी बेटों को
माँ का दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा
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उसकी मुरादें सब पूरी हो जाएंगी
दर पे उसके जो दामन फैलाएगा
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मेरी ग़ज़लों के कुछ शे'र सुना दीजे
जख़्म-ए-दिल को कुछ तो दवा मिल जाएगा
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क्यूं दौलत पे लोग रज़ा इतराते हैं
ये सब कुछ तो मिट्टी में मिल जाएगा
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब,
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ सलीम राजा साहिब , मुबारकबाद कुबूल करे | आदाब
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