For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझसे ऐ जान-ए-जानाँ क्या हो गई ख़ता है -SALIM RAZA REWA

 221 2122 221 2122
मुझसे ऐ जान-ए-जानाँ क्या हो गई ख़ता है
जो यक-ब-यक ही मुझसे तू हो गया ख़फ़ा है
-
कुछ भी नहीं है शिकवा कुछ भी नहीं शिकायत
क़िस्मत में जो है मेरे  वो मुझको मिल रहा है
-
आंखों में नींद रुख़ पर गेसू बिखर रहे हैं
हिज्र-ए-सनम में शायद वो जागता रहा है
-
शाख़-ए-शजर हैं सूखी मुरझा गई हैं कलियाँ
गुलशन हुआ है वीरां कैसा ग़ज़ब हुआ है
-
इक पल में रूठ जाना इक पल में मान जाना 
उसकी इसी अदा ने दीवाना कर दिया है
-
जब है सज़ा सुनाई दार-ओ-रसन की हमको
फिर पूछते हो क्यूँ अब ख़्वाहिश हमारी क्या है
-
तेरी ख़ुशी में ख़ुश हूँ ग़म में तिरे परेशाँ
मर्ज़ी है जो भी तेरी  मेरी वही रज़ा है
-
दार-ओ-रसन =सूली फाँसी 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 837

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on January 15, 2018 at 9:37am
भाई बृजेश जी बहुत बहुत शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on January 15, 2018 at 9:36am
धन्यवाद सुरेंद्र सिंह जी
Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2018 at 6:00am

आद0 सलीम रज़ा जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने,  बहुत बहुत बधाई, शेष गुनिजनो की बातों का संज्ञान लीजियेगा।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 13, 2018 at 2:02pm

खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय सलीम साहब..बधाई

Comment by Samar kabeer on January 12, 2018 at 5:12pm

मक़्ते का ऐब-ए-तनाफ़ुर भी निकालें ।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 12, 2018 at 12:18pm
जनाब समर साहब,
ग़ज़ल पे शिरकत के लिए शुक्रिया
. कुछ दब्दीली कर दिए हैं देखिएगा
Comment by SALIM RAZA REWA on January 12, 2018 at 11:48am
सुरेंद्र जी शुक्रिया अर्थ लिख दिया है,
Comment by SALIM RAZA REWA on January 12, 2018 at 11:46am
जनाब आरिफ साहब शुक्रिया,
Comment by Samar kabeer on January 11, 2018 at 5:50pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।

हुस्न-ए-मतला में ईता दोष है ।

मक़्ते में ऐब-ए-तनाफ़ुर और शुतरगुर्बा के दोष हैं ।

Comment by surender insan on January 11, 2018 at 4:13pm

वाह जी वाह बहुत बढ़िया ग़ज़ल जी। बधाई स्वीकार करे  जी।

दार ओ रसन का अर्थ बताये जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
3 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service