2122 1212 22
तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता
दिल ये तुझपे फ़िदा नहीं होता
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इश्क़ तुमसे किया नहीं होता
ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता
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ज़िन्दगी तो संवर गयी होती
ग़र वो मुझसे जुदा नहीं होता
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उसकी चाहत ने कर दिया पागल
प्यार इतना किया नहीं होता
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सबको दुनिया बुरा बनाती है
कोई इंसाँ बुरा नही होता
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चोट खाएँ भी मुस्कुराएँ भी
अब रज़ा हौसला नहीं होता.
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सलीम जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
आ सलिन रज़ा जी | ग़ज़ल बहुत उम्दा बनी है , मुबारक बाद कुबूल करें |
आदरणीय सलीम साहब, आपकी बात ठीक है लेकिन कोशिश यही होनी चाहिए की मिस्ररा भी ठीक हो और शेरियत भी बनी रहे. सादर
आदरणीय सलीम साहब,
तीसरे शेर को निकाल देने से ग़ज़ल बेहतर हो गयी है. दूसरे शेर में 'तो' कम होने से मेरी मुराद ये थी कि दोनों मिसरों को जोड़ने वाला संयोजक इनमे नहीं है. दोनों मिसरों को अगर सरल वाक्य के रूप में लिखें तो यह बात स्पष्ट हो जायेगी :
'तुमसे इश्क़ नहीं किया होता तो ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता'.
इसी मजमून को एक दूसरे सरल वाक्य में लिखते हैं :
'जिंदगी में मजा नहीं होता अगर आपका प्यार नहीं होता'
अब इसे शेर में बदलेंगे तो कुछ यूं होगा :
प्यार अगर आपका नहीं होता >दर्द गर आपका नहीं होता
जिंदगी में मजा नहीं होता
यह एक फ़ौरी सुझाव है ऊला के लिए इससे बेहतर मिसरे आप खुद सोच सकते हैं.
सादर
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