For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है - सलीम रज़ा

212 1222 212 1222
बज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है
महकी सी फ़ज़ाएँ हैं कौन आने वाला है
-
चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है
मेरे घर के आँगन में सुरमई उजाला है
-
इतनी सी गुज़ारिश है नींद अब तू जल्दी आ 
आज मेरे सपने में यार आने वाला है
-
जागना वो रातों को भूक प्यास दुख सहना
माँ ने अपने बच्चों को मुश्किलों से पाला है
-
उसके दस्त-ए-क़ुदरत में ही निज़ाम-ए-दुनिया है
इस जहान-ए-फ़ानी को जो बनाने वाला है
-
मुफ़लिसी से रिश्ता है ग़म से दोस्ती अपनी
मुश्किलों को भी हमने दिल मे अपने पाला है
-
उसकी शोख़ नज़रों का ये कमाल है देखो  
ज़िंदगी में अब मेरी हर तरफ उजाला है
-
भूल वो गया मुझको ग़म नहीं रज़ा लेकिन
उसकी याद को दिल में अब तलक सँभाला है
-
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1031

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on January 9, 2018 at 12:29pm
जनाब समर साहब,
आपके मशविरे के मुताबिक़ टंकण गलती ठीक कर दी गई है, आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 9, 2018 at 12:25pm
बृजेश भाई,
ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए शुक्रिया.
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 9, 2018 at 12:42am

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय सलीम जी..मलते से लेकर सभी शेर खूबसूरत हुए..सादर

Comment by Samar kabeer on January 8, 2018 at 5:55pm

मतले के ऊला में 'वज़्म' टंकण त्रुटि ।

हुस्ने मतला में 'कला' टंकण त्रुटि ।

4थे शैर में 'मुश्किलों' में 'क' के नीचे बिंदी,टंकण त्रुटि ।

छटे शैर में भी यही ग़लती ।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 8, 2018 at 5:41pm
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी,
ग़ज़ल को अपनी मुहब्बत से नवाज़ने के लिए शुक्रिया..
Comment by SALIM RAZA REWA on January 8, 2018 at 5:40pm
आ. काली प्रसाद जी,
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत के लिए शुक्रिया... आपको टंकण त्रुटि कहाँ लगती है बताएँ तो बात बने.... हमें तो नहीं दिख रही है
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2018 at 12:38pm

आ. भाई सलीम जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 8, 2018 at 11:04am

आदरणीय सलीम रज़ा साहिब आदाब " बही उम्दा ग़ज़ल |गुणी जन उस पर बता चुके है | मुझे "चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला कला है " में टंकण त्रुटी लगती है ... 'काला काला'  तो ठीक  \\आदाब 

Comment by SALIM RAZA REWA on January 7, 2018 at 9:05am
जनाब समर साहब,
आपके मुताबिक़ कुछ ताब्दीली की गई है ग़ौर फरमाएं.
Comment by Samar kabeer on January 6, 2018 at 12:18pm

आपकी जिद्दत आपको मुबारक हो ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service