For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मत्त सवैया (वीर रस की कविता)

क्षमाशीलता की इक सीमा, जब कोई उसको पार करे
शस्य श्यामला धरती का भी, पामर कोई प्रतिकार करे
काँप उठे धरती अम्बर तब, अरु महाप्रलय अवतार धरे
क़फ़न तिरंगे का पहने फिर, हर हाथ खड्ग तलवार धरे।1।

कुछ अधम उतारू करने को, भारत माँ के टुकड़े टुकड़े
ऐसी बातें सुनकर भी क्यों, हैं शस्त्र तुम्हारे मौन पड़े
जो देश धरा को गाली देते, उनके तुम क्यों हो साथ खड़े
रूप नहीं क्यों रौद्र दिखाते, शीश उड़ाते चिथड़े चिथड़े।2।

शत्रु सामने बलशाली हो, सम्मुख उसके तुम झुको नहीं
मृत्य नाचती हो मस्तक पर, तुम किंचित भय से रुको नहीं
शीश अलग हो जाये धड़ से, पर हार नहीं स्वीकार करो
कटे शीश से ही उठकर तुम, रण बीच शत्रु संहार करो।3।

जिस थाली में खाते हैं वे, उसमे ही जब छेद करें
एक भाव से मारे उनको, उनमे नहीं कभी भेद करें
हिन्दू मुश्लिम के चश्मे से, हो न् कभी कोई बात यहाँ
एक सूत्र में बधें रहें हम, बिगड़ें न कभी हालात यहाँ।4।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1089

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on January 10, 2018 at 5:17pm

आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,

                        आपकी प्रतिक्रिया जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई । भाई मेरे , ओबीओ मंच भी सीखने-सिखाने का है । कोई भी दोहरे मापदंड का नहीं ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 10, 2018 at 2:59pm

आद0 आली जनाब समर कबीर साहब सादर प्रणाम। आपका आशीष मिला, लेखन सार्थक हुआ। उत्साहवर्धन के लिए हृदय तल से आभार।सादर

Comment by नाथ सोनांचली on January 10, 2018 at 2:57pm

आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। मंच पर सब सीखने वाला है इसलिए किसी को प्रकांड विद्वान कहना कम से कम आप से उम्मीद नहीं की जाती । सादर

Comment by Samar kabeer on January 9, 2018 at 11:23pm

जनाब सिरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,अच्छे छन्द लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on January 9, 2018 at 7:56pm

आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,

                            मत्त सवैया छंद पर आपकी प्रतिक्रिया जानकर बहुत ही प्रसन्नता हुई । दरअसल बात यह है कि मत्त सवैया छंद कितना लोकप्रिय छंद नहीं है । जो छंद जनमानस में  लोकप्रिय नहीं हो और कोई मेरे जैसा अल्पज्ञ जानने की कोशिश करें तो इसमें आप जैसे प्रकाण्ड विद्वान को बताने में कोई गुरेज़ या अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए बल्कि आगे रहकर सहर्ष भाव से बताने में अपना आत्म गौरव होना चाहिए । जहाँ तक बात मेरे दोहों की है तो मैं आपको बता दूँ कि दोहा एक अत्यंत लोकप्रिय और जनमानस का छंद है । आप ही बताइए कि मत्त सवैया क्या दोहे के मुकाबले में कितना अधिक प्रचलन में है ? शायद नहीं । आपको भी इस छंद को गढ़ने में काफी मशक्कत करना पड़ी होगी ।इस मत को आप भी स्वीकार करेंगे ।

                                    एक बात और साझा करना चाहूँगा कि आप अपनी अगली प्रतिक्रिया में खुद ही मत्त सवैया के छांदसिक विधान के बारे बतलाते हुए कह रहे कि यह छंद मैंने ओबीओ पटल पर सीखा है और साथ ही छांदसिक विधान भी लिख रहे हैं । यह प्रतिक्रिया आपने किसको दी मुझे नहीं पता क्योंकि आपने संबोधन नहीं लिखा और न ही नाम लिखा है ।

  • नोट:- ओबीओ के समस्त क़लमकारों को मैं निरपेक्ष भाव से प्रतिक्रिया देता हूँ ।
Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2018 at 2:55pm

मत्त सवैया मैंने ओ बी ओ पटल से सीखा है, 16-16 मात्राओं पर यति, 2-2 पंक्तियो की तुकान्तता और 4 पंक्तियो का एक सवैया।

Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2018 at 2:53pm

आद0 मोहित मुक्त जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए कोटिश आभार। आपके सुझाव पर गौर करूँगा। सादर

Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2018 at 2:52pm

आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। आप लगभग सभी रचनाओ पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं जो आपकी सदाशयता को प्रकट करता है। हम सभी इसके कायल भी हैं।

आपने नव वर्ष पर दोहे लिखे पर उस पर छःन्द विधान नहीं लिखा क्योकि साहित्य में रूचि लेने वाला अगर दोहा के विधान को नहीं जानता तो वह ओ बी ओ पटल से छंदों के बारे में पढ़कर जानकारी ले लेगा। यहीं बात यहाँ पर बहुँ लागू होना चाहिए। आखिर आपका दो मापदंड क्यों??

सादर

Comment by Mohammed Arif on January 9, 2018 at 12:57pm

आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,

                        मत्त सवैया का पहले छांदसिक विधान लिखे तभी कुछ कहना संभव होगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service