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जख्म पर मरहम लगाना हो गया ।
आदमी कितना सयाना हो गया ।।
इस तरह दिल से न तुम खेला करो ।
खेल यह अब तो पुराना हो गया ।।
इश्क भी क्या हो गया है आपसे ।
घर मेरा भी शामियाना हो गया ।।
बाद मुद्दत के मिले हो जब से तुम ।
तब से मौसम आशिकाना हो गया ।।
बात पूरी हो गई नजरों से तब ।
आपका जब मुस्कुराना हो गया ।।
जब किया इजहार उनसे इश्क़ का ।
फिर कचहरी और थाना हो गया ।।
क्यों उठाई आप ने अपनी नकाब ।
दिल पे हमला क़ातिलाना हो गया ।।
मुन्तज़िर होकर गुजारी शब यहां ।
बस तेरा वादा निभाना हो गया ।।
छोड़ दे हमको हमारे हाल पर ।
दिल यहाँ टूटे ज़माना हो गया ।।
बात पूरी हो गई नजरों से तब ।
आपका जब मुस्कुराना हो गया ।।
क्या भरोसा रह गया इंसान पर ।
काम उसका बहिशियाना हो गया ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अ प्रकाशित
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