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तेरी आँखों में अभी तक है अदावत बाकी ।
है तेरे पास बहुत आज भी तूुहमत बाकी ।।
इस तरह घूर के देखो न मुझे आप यहाँ ।
आपकी दिल पे अभी तक है हुकूमत बाकी ।।
तोड़ सकता हूँ मुहब्बत की ये दीवार मगर।
मेरे किरदार में शायद है शराफत बाकी ।।
ऐ मुहब्बत तेरे इल्जाम पे क्या क्या न सहा ।
बच गई कितनी अभी और फ़ज़ीहत बाकी ।।
मुस्कुरा कर वो गले मिलने लगा है मुझसे ।
कुछ तो होगी ही उसे खास ज़रूरत बाकी ।।
बात होती ही रही आपकी शब भर उनसे ।
रह गई कैसे भला और शिकायत बाकी ।।
वो मुलाकात पे बैठा है लगाकर पहरा ।
तेरे दरबार में कुछ रह गयी रिश्वत बाकी ।।
कौन कहता है वो मासूम बहुत है यारों ।
उसकी फितरत में बला की है शरारत बाकी ।।
इश्क़ फरमाए भला कौन हिमाकत करके ।
आप रखते हैं कहाँ गैर की इज़्ज़त बाकी ।।
मेरे साकी तू अभी और चला दौर यहाँ ।
पास मेरे है अभी और भी दौलत बाकी ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अ प्रकाशित
Comment
अच्छी गजल हुई है ,हार्दिक बधाई आ.
आ0 सुरेंद्र नाथ सिंह जी सादर आभार ।
आद0 नवीन मणि जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही, आद0 समर साहब के इस्लाह से उत्तम। समर सहाब को नमन और आपको इस ग़ज़ल पर बधाई
अब ठीक है ।
आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार । आपका सुझाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है । मैंने सुधार किया है ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले के सानी मिसरे में 'तोहमत' को "तुहमत" कर लें ।
दूसरे शैर के ऊला में 'बारहा' की जगह " इस तरह" कर लें ।
तीसरे शैर का सानी बह्र में नहीं है,'ज़मीर' की जगह "किरदार" कर लें ।
5वें शैर का ऊला यूँ करें :-
'मुस्कुरा कर वो गले मिलने लगा है मुझसे"
और सानी में 'कोई' की जगह "उसे" कर लें ।
छटा शैर हटा दें ।
आठवें का ऊला यूँ करें:-
'वो मुलाक़ात पे बैठा है लगा कर पहरा"
और सानी यूँ करें:-
'तेरे दरबार में कुछ रह गई रिश्वत बाक़ी'
खूब सुन्दर रचना
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