For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

असाधारण आस

हवा की लहर का-सा

हलका स्पर्ष

कि मानो कमरे में तुम आई

मेरे कन्धे पर हलका-सा हाथ ...

छू कर मुझे, स्वपन-सृष्टि में

पुन: विलीन हो गई

कुछ कहा शायद

जो अनसुना रहा

या जो न कहा

वह मेरे खयालों ने सुना

कोई एक खयाल अधूरा

जो पूरा न हुआ

कण-कण काँप रहे तारों के

तिमिर-तल के तले

खयाल जो पूरा न हुआ

मुराद

बन कर रह गया, जैसे

अँधेरे स्वप्न से जागा कोई, सो गया

तुम्हारे दिल की धड़कन भी

इसी मुराद में थिरकती

तुम्हीं से अलग, पर तुमसे ज़्यादा

वह मुझमें धड़कती

और तुम सुन-सुन उसको

अनपेक्षित-सी, पहुँच जाती थी पास

सिर मेरे कन्धे पर

मेरी साँसों के स्पर्ष से शरमाए

आकांक्षित ओंठ तुम्हारे मुस्करा देते

पलकें कभी खुलती कभी मुंदती

उस स्वप्न-सृष्टि में अनुरंजित तुम

अधजगी-सी सोई निश्चल सरोवर-सी

तुम्हारी वह पहचानी

अपनी-सी धड़कन भी अब है

पुराने घाव-सी

थर्राता शीत-भरा रात का पक्षी

मेरा मन

नि:स्तब्ध .. उदास .. छिन्न-भिन्न

अँधियारे सूने में अब मेरी अनवस्थाएँ गहरी

एक दिया आस का फिर भी जलती लौ से

काँप-काँप है बटोरता रहा

मेरे अस्तित्व के अव्यवस्थित कण

कि लौट आएँगी तुम्हारी निर्दोश आँखे

तुम्हारे स्नेह-स्वरों की अनुगूँज लिए

                 ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 786

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 5, 2018 at 2:29pm

आपका हार्दिक आभार, आ० नरेन्द्र जी।

Comment by narendrasinh chauhan on February 5, 2018 at 2:26pm
लाजवाब.....
Comment by vijay nikore on January 29, 2018 at 12:44pm

आपका हार्दिक आभार, आ० लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2018 at 8:23am

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । असाधारण प्रस्तुति के लिए कोटि कोटि बधाई ।

Comment by vijay nikore on January 28, 2018 at 9:04am

आपका हार्दिक आभार, बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 26, 2018 at 4:31pm

वाह आदरणीय भावों बड़े ही प्रभावशाली अंदाज में शब्दों में पिरोया है...बहुत सुन्दर

Comment by vijay nikore on January 25, 2018 at 11:11am

आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब। सराहना के लिए हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on January 25, 2018 at 11:08am

आपका हार्दिक आभार, सतविन्द्र जी

Comment by vijay nikore on January 25, 2018 at 11:08am

आपका हार्दिक आभार, सुरेन्द्र जी

Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:44pm
भाई विजय जी.. वह... वाह
ख़ूबसूरत कविता के लिए बधाई..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service