लघुकथा - गवाह –
नेताजी की हवेली में काम करने वाली चंपा की नाबालिग लड़की रूपा की नेताजी के लड़के ने ज़बरन इज्जत लूट ली। नेताजी ने साम, दाम, दंड और भेद सब हथकंडे अपना लिये, लेकिन चंपा किसी भी तरह मामले को रफ़ा दफ़ा करने को राजी नहीं हुयी।
आखिरकार नेताजी अपनी औक़ात पर आ गये। चंपा को बोल दिया,"जा जो तेरी मर्जी हो कर ले"।
चंपा भी इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं थी। चीख चीख कर सारी बस्ती इकट्ठा कर ली। चंपा के दो चार पुराने शुभ चिंतकों ने मशविरा दे डाला कि सब जुलूस लेकर थाने चलो और नेताजी के छोरे के नाम नामज़द रिपोर्ट लिखवाओ। सारा मोहल्ला गवाही देगा|
पूरा मोहल्ला "नेताजी मुर्दाबाद" के नारे लगाते हुये थाने पहुँच गया।
शोरगुल सुनकर दरोगा जी ने सिपाही भेज कर चंपा को अंदर बुलाया। चंपा ने अपनी बेटी के साथ दरोगा जी के रूबरू होकर सारा किस्सा सुना दिया।
"तुम्हारे इस केस में गवाह कौन है"?
"हुजूर पूरा मोहल्ला थाने के बाहर खड़ा है"।
"ठीक है, जाओ, उनमें से चार छह भरोसे के लायक लोगों को बुलालो, जो कोर्ट कचहरी में मुकर ना जांय"।
चंपा थाने के बाहर आई तो वहाँ कोई नहीं था। नेताजी खड़े अपनी मूंछें ऐंठ रहे थे।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
इस बढ़िया यथार्थपरक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. तेज वीर सिंह जी. सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब , समाज को आइना दिखाती सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
हार्दिक आभार आदरणीय सलीम रजा रेवा साहब जी।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।आपकी सकारात्मक और प्रेरणात्मक टिप्प्णी सदैव मेरा मार्ग दर्शन करती हैं।सादर।
वास्तविकतायें बयां करती बढ़िया मार्मिक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब। नकारात्मक अंत में गंभीर कटाक्ष भी है।
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