वासन्ती-गीत
सुरीले दिन वसन्त के
मनहर,सरसाते दिन आये रसवन्त के
सुरीले दिन वसन्त के.....!
बहुरंगी बोछारे धरती पर बरसाते
ऋतुओ का राजा फिर आया हँसते गाते
पोर पोर पुलकित दिक् के दिगन्त के
सुरीले दिन वसन्त के......!
मस्ताना मौसम जनजीवन में थिरकन हैं
कान्हा की भक्ति मे खोया हर तन मन हैं
चित्त चपल, ध्यान मग्न, योगी और संत के
सूरीले दिन वसन्त के......!
कान्हा की मुरली की तान पर लजाती- सी
नचती हैं राधा ! निज कंगना खनकाती- सी
कण कण मे व्यापक अनश्वर अनन्त के
सुरीले दिन वसन्त के.........!
मौलिक अप्रकाशित
--- नन्दकिशोर दुबे
Comment
आदरणीय नंदकुमार दुबे जी आदाब,
सरल-सरस शब्दों में वासंती सुहास के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आद0 नन्द किशोर जी सादर अभिवादन। वसंतागमन पर बेहतरीन गीत से आपने स्वागत किया वसन्त का। सटीक वर्णन । बधाई इस प्रस्तुति पर
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