कुम्ह्लाइए मत खिल-खिल रहिये !
खुश-खुश रहिये , हिलमिल रहिये !
बीत गया मनमोहक सपना
खो गया दिलबर आपका अपना
कतराइये मत, शामिल रहिये
हंसमुख रहिये, चुलबुल रहिये !…
Added by नन्दकिशोर दुबे on April 4, 2018 at 5:00pm — 3 Comments
गीत
कंटक ही कंटक हैं, जीवन के पथ में !
प्राणों पर संकट है, काया के रथ में !
क्षण-क्षण यह चिंतन
जीवन बीहड़ वन !
इस वन में एकाकी
प्राणों का विचरण…
Added by नन्दकिशोर दुबे on February 27, 2018 at 11:30am — 7 Comments
रात गहरी, घोर तम छाया हुआ !
हार कर बैठा हूँ --- पथराया हुआ !
यूँ पड़ा हूँ, लोकपथ के तीर पर
जैसे प्रस्तर-खण्ड ठुकराया हुआ !
दूर जुगनूँ एक दिपता आस का
शेष सब सुनसान, थर्राया हुआ !…
ContinueAdded by नन्दकिशोर दुबे on February 17, 2018 at 5:08pm — 4 Comments
वासन्ती-गीत
सुरीले दिन वसन्त के
मनहर,सरसाते दिन आये रसवन्त के
सुरीले दिन वसन्त के.....!
बहुरंगी बोछारे धरती पर बरसाते
ऋतुओ का राजा फिर आया हँसते गाते
पोर पोर पुलकित दिक् के दिगन्त के
सुरीले दिन वसन्त के......!
मस्ताना मौसम जनजीवन में थिरकन हैं
कान्हा की भक्ति मे खोया हर तन मन हैं
चित्त चपल, ध्यान मग्न, योगी और संत के
सूरीले दिन वसन्त…
ContinueAdded by नन्दकिशोर दुबे on January 28, 2018 at 7:30pm — 2 Comments
कौन किस वक्त क़ौल से अपने
हट के फिर जायेगा भरोसा क्या ?
कब ये आकाश टूटकर मेरे
सर पे गिर जायेगा भरोसा क्या ?
दोस्ती को निबाहने वाले
हों तो इतिहास में ही जिन्दा हों
आज के दौर का कोई बन्दा
कब मुकर जायेगा भरोसा क्या ?
प्यार की बात, साथ जन्मों का
बोलना तो सरल मगर प्यारे
प्यार का फूल किस घटी,किस पल
झर बिखर जायेगा भरोसा क्या ?
चंद जुमले उछाल कर तुम तो
अपने मित्रों के सर ही चढ़ बैठे
याद रखियेगा,…
Added by नन्दकिशोर दुबे on October 20, 2017 at 9:00pm — 6 Comments
ज्यों खटक जाता है
किसी चित्रकार को
स्वरचित सफल चित्र पर
अचानक रंगो का बिखर
जाना !
.
ज्यों खटक जाता है
ज्येष्ठी धूप में तपे प्यासे मानव को
सम्मुख आ सजल पात्र का
अकस्मात ही लुढ़क जाना !.
ज्यों खटक जाता है
प्रणयी युगल को
मधुर प्रणय मिलन
के मध्य
किसी अन्य का
अप्रत्याशित आ जाना !
.
त्यों ही खटक रहा है मुझको
शरद्पूर्णिमा के चंद्र पर
निगोड़े मेघो का छा जाना !! …
Added by नन्दकिशोर दुबे on October 1, 2017 at 9:00pm — 3 Comments
सम्भावना के द्वार पर दस्तक हुई है
देखकर मुझको हुई वह छुईमुई है
देखता ही रह गया विस्मित चकित सा
रंग, रस, मद से भरी वह सुरमई है
रम्य मौसम, रम्य ही वातावरण ये
सुनहली इस साँझ की सज धज नई है
प्रेम की पलपल उमड़ती भावना पर
वर्जनाओं की सतत् चुभती सुई है
तरलता बांधी गयी, कुचली गयी हैं कोपलें
क्रूरता द्वारा सदा सारी हदें लांघी गयी हैं
क्रूरता सहनें को तत्पर, वर्जना मानें ना मन
प्यार का अदभुत् असर हम पर हुआ कुछ जादुई है…
Added by नन्दकिशोर दुबे on September 22, 2017 at 11:30pm — 4 Comments
कुछ जाना कुछ अनजाना-सा लगता है
कुछ भूला कुछ पहचाना-सा लगता है
दर्पण में प्रतिबिम्बित अपना ही मुखड़ा
कुछ अपना कुछ बेगाना -सा लगता है
मुझ-सम लाखो लोग यहां पर बसते है
हर कोई बस दीवाना-सा लगता है
जीवन तो बस वाल्मीकि की वाणी मे
आंसू की गाथा गाना-सा लगता है !
.
मौलिक व अप्रकाशित ---नन्दकिशोर दुबे
Added by नन्दकिशोर दुबे on September 22, 2017 at 11:00pm — 2 Comments
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