कुम्ह्लाइए मत खिल-खिल रहिये !
खुश-खुश रहिये , हिलमिल रहिये !
बीत गया मनमोहक सपना
खो गया दिलबर आपका अपना
कतराइये मत, शामिल रहिये
हंसमुख रहिये, चुलबुल रहिये !
मीत सुहाना, सरस सुरीला
छल गया स्वप्न दिखा रंगीला
पछताईये मत , चंचल रहिये
घायल रहिये, सर्पिल रहिये !
प्रीत-प्रणय का खैल अनोखा
मन लुभावना मीठा धोखा
पगलाइये मत, कातिल रहिये
सज-धज रहिये ,झिलमिल रहिये !
ये जग झूठा, स्वप्न अनूठा
साँस थमी, सपना ये टूटा
उकताईये मत, लहरिल रहिये
पल पल, कल कल,छल छल रहिये !!
मौलिक/प्रतिलिप्याधिकार
नन्दकिशोर दुबे
Comment
बहुत खूब..
निराशा के दौर में सकारात्मक भाव से परिपूर्ण नव जागरण कराते बढ़िया गीत के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नंदकिशोर दुबे जी।
जनाब नन्दकिशोर दुबे जी आदाब,गीत का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
गीत आपने किस विधान पर लिखा है,बता देते तो कुछ कहने में आसानी होती,तुकन्नता पहले तो "मिल" "खिल" रही बाद में 'चुलबुल" " चंचल" हो गई इस पर ग़ौर करें,रचना के साथ विधान लिखना इस मंच का नियम है जिससे नये सीखने वालों को सुविधा होती है ।
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