कौन किस वक्त क़ौल से अपने
हट के फिर जायेगा भरोसा क्या ?
कब ये आकाश टूटकर मेरे
सर पे गिर जायेगा भरोसा क्या ?
दोस्ती को निबाहने वाले
हों तो इतिहास में ही जिन्दा हों
आज के दौर का कोई बन्दा
कब मुकर जायेगा भरोसा क्या ?
प्यार की बात, साथ जन्मों का
बोलना तो सरल मगर प्यारे
प्यार का फूल किस घटी,किस पल
झर बिखर जायेगा भरोसा क्या ?
चंद जुमले उछाल कर तुम तो
अपने मित्रों के सर ही चढ़ बैठे
याद रखियेगा, जो इधर आया
कल किधर जायेगा भरोसा क्या ?
बुद्धिजीवी अगर कोई होगा
व्यक्त होना है उसकी मजबूरी
सोच विपरीत मानकर ज़ालिम
कत्ल कर जायेगा भरोसा क्या ?
ज़िन्दगी की यहाँ सुनिश्चितता
हमने देखी नहीं कभी यारों
कौन ज़िन्दा रहेगा किस पल तक
कौन मर जायेगा भरोसा क्या ?
मौलिक व अप्रकाशित ---नन्दकिशोर दुबे
Comment
आदरणीय , भरोसा पर बेहतरीन रचना हुई है | बधाई स्वीकारें आदरणीय |
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