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आहट की प्रतीक्षा में ...

आहट की प्रतीक्षा में ...

जाने
कितनी घटाओं को
अपने अंतस में समेटे
अँधेरे में
चुपचाप
बैठी रही

कौन था वो
जो कुछ देर पहले
देर तक
मेरे मन की
गहन कंदराओं में
अपने स्वप्निल स्पर्शों से
मेरी भाव वीचियों को
सुवासित करता रहा
और
मैं
ऑंखें बंद करने का
उपक्रम करती हुई
उसके स्पर्शों के आग़ोश में
मौन अन्धकार का
आवरण ओढ़े
चुपचाप
बैठी रही

आहटें
रूठ गयीं
स्पर्श
निष्पंद हो गये
पवन वेग से
वातायन के पट
शोर करने लगे
मैं
भ्रम की चादर पर
विश्वास के पैबंद लगाने लगी
वो आएगा
ज़रूर आएगा
आज नहीं तो कल आएगा
मैं
अपने काजल को
अंतस की घटाओं के
हवाले नहीं करूंगी
मैं
अपने अवसन्न अधरों पर
उसकी तृषा का वरण किये
तम से बतियाती
द्वार पर टकटकी लगाए
आहट की प्रतीक्षा में
चुपचाप
बैठी रही

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 2, 2018 at 10:01pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर कविता ..

Comment by Sushil Sarna on February 2, 2018 at 8:09pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब , आदाब , सृजन को आत्मीय स्नेह से अलंकृत करने का दिल से आभार।

Comment by Mohammed Arif on February 1, 2018 at 5:40pm

आलरणीय सुशील सरना जी आदाब,

                              हमेशा की तरह यह कविता भी बड़ी हृदय स्पर्शी लगी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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