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अमर हो गए ...

मेरी हिना
बहुत लजाई थी
जब तुम्हारे स्पर्श
मेरे हाथों से
टकराये थे

मेरा काजल
बहुत शरमाया था
जब
तुम्हारी शरीर दृष्टि ने
मेरी पलक
थपथपाई थी

मेरे अधर
बहुत थरथराये थे
जब तुम्हारी
स्नेह वृष्टि ने
मेरे अधर तलों को
अपने स्नेहिल स्पर्श से
स्निग्ध कर दिया था

मैं शून्य हो गयी
जब
प्रेम के दावानल में
मेरा अस्तित्व
तुम्हारे अस्तित्व के अंतस में
समाहित हो गया

मैं
उस एक पल में जैसे
एक सदी जी गई

और तुम
उस एक पल में
मेरी शेष श्वासों को
अमरत्व दे गए
मुझ में
अमर हो गए

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 8, 2018 at 6:54pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी ,  ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2018 at 3:58pm

आ. भाई सुशील जी, सुंदर अभिव्यक्ति हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2018 at 2:58pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2018 at 2:58pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब। ... सृजन को आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Samar kabeer on February 4, 2018 at 9:23pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत बढ़िया कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on February 4, 2018 at 4:57pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,

                              प्रेम रस में डूबी सुंदर भावाभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई.स्वीकार करें ।

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