२१२२/२१२२/२१२
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खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर
सब को जाना है ये मेला छोड़ कर.
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एक क़िस्सा-गो अचानक मर गया
अपने कुछ क़िरदार ज़िंदा छोड़ कर.
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था बहुत जिन को समुन्दर पर यकीं
अब वो पछताते हैं दरिया छोड़ कर.
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मोड़ कोई इक ग़लत मुडने के बाद
याँ तलक पहुँचे हैं रस्ता छोड कर.
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उस ख़ुदा का मत दिया कर वास्ता
जा चुका जो कब से दुनिया छोड़ कर.
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बात मेरी मान कर तो देखिये
आप अपना ये रवैया छोड़ कर.
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चाँद तारों में लो वापस आ गये
“नूर साहब” जिस्म जलता छोड़ कर.
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निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर
सब को जाना है ये मेला छोड़ कर वाह! वाह!! बहुत ख़ूब ! बहुत ख़ूब! सच है, एक दिन सबको ये दुनियादारी का तामझाम छोड़कर जाना ही होता है । जगत् नाशवान है । बहुत ही सच्चा शे'र । दिली मुबारकबाद आदरणीय निलेश जी ।
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