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लघुकथा – अनकही -

लघुकथा – अनकही -

सुनिधि की ससुराल में इस बार पहली होली थी। वह पिछले तीन दिन से अपने देवर को याद दिला रही थी कि होली में तीन दिन बचे हैं।तैयार हो जाओ।

"भाभीजी, मैं होली नहीं खेलता"।

"पर हम तो खेलते हैं।

"आप खेलो ना, आपको किसने रोका है"।

होली के दिन सुनिधि ने देवर के कमरे में झाँक कर देखा, देवर अपने कंप्यूटर में व्यस्त था, वह चुपके से दोनों हाथों में गुलाल लिये गयी और पीछे से देवर के गालों पर मल दिया।देवर एकदम चीख पड़ा,

"माँ, कहाँ हो, जल्दी आओ,  भाभी ने मार डाला"?

और ज़मीन पर लेट कर छटपटाने लगा।सुनिधि को कुछ पल्ले नहीं पड़ा। वह घबराई सी खड़ी देवर को ताक़ रही थी। उसे लगा कि देवर उसे डराने के लिये नाटक कर रहा है|

सासू माँ ने आते ही आसमान सर पर उठा लिया।सुनिधि को छत्तीस बातें सुना डालीं। पूरे घर में कोहराम मच गया| घर के सभी सदस्य यहाँ तक कि नौकर चाकर भी उसे ऐसे देख रहे थे जैसे वह कोई गंभीर अपराध की दोषी हो।

सासू माँ ने बड़े बेटे को बुलाकर देवर को उठाकर गाड़ी में डाला और सारे घरवाले  अस्पताल  चले गये |

घर पर सुनिधि  अकेली अपने  कमरे में थीं।नौकर सुनिधि को खाने के लिये पूछने आया था लेकिन सुनिधि ने मना कर दिया।भूखी प्यासी रोये जा रही थी।उसका कोमल मन इस बात को समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर उसने क्या गलती कर डाली।

देर रात उसका पति अस्पताल से लौटा। सुनिधि जागी हुयी थी। ऐसी परिस्थिति में नींद आने का तो प्रश्न ही नहीं था| उसकी कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुयी लेकिन उसकी नज़रों में अनगिनत सवाल घूम रहे थे।आखिरकार सुनिधि के पति से ज्यादा देर सुनिधि की रोनी सी, तनावपूर्ण सूरत बरदास्त  नहीं हुयी। उसने ही चुप्पी तोड़ी,

"अब वह खतरे से बाहर है।उसे रंगों से एलर्ज़ी है।उसने तुम्हें तीन दिन पहले ही बता दिया था कि वह होली नहीं खेलता"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Mohammed Arif on March 5, 2018 at 5:35pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी आदाब,

                            प्रासंगिक विषय पर लिखी गई लघुकथा है । मगर यह लघुकथा कालखण्ड दोष से ग्रसित हो गई है क्योंकि होली खेलने का कालखण्ड सुबह का है और सुनिधि अपने पति को सारा घटनाक्रम देर रात को बता रही है । अत: कालखण्ड दोष आ गया है । वैसे आप ख़ुद बेहतर तरीक़े से जानते हैं कि लघुकथा एक क्षण में घटित होने वाली घटना होती है । वह क्षण का प्रतिनिधित्व करती हैत्र। कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ भी है । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Harash Mahajan on March 5, 2018 at 5:03pm

वाह आदरणीय तेजवीर सिंह जी बहुत ही आला लघु कथा पेश की आपने ।

इस विदा में बहुत कम आया किया हूँ । सस्पेंस आखिर तक कायम रखा आपने एक अच्छी कथा की निशानी है । खूब सर । बहुत बहुत बधाई ।

सादर !!

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