शिक्षा - लघुकथा –
"माँ, मैं भी होली खेलने जाऊं क्या? बस्ती के सब बच्चे होली खेल रहे हैं"।
"नहीं रेशमा,नहीं मेरी बच्ची, तेरे पास फ़टे पुराने कपड़े तो हैं नहीं। मुश्किल से एक जोड़ी तो कपड़े हैं, उन्हें भी होली में खराब कर लेगी तो कल से स्कूल कैसे जायेगी"?
"माँ, यह कैसा मज़ाक़ है, दिवाली पर कहती हो कि तुम्हारे पास नये कपड़े नहीं हैं इसलिये घर से मत निकलो। और होली पर कहती हो तुम्हारे पास पुराने कपड़े नहीं हैं, सो होली मत खेलो"?
"क्या करें मेरी बच्ची, ऊपरवाले ने हम गरीबों के नसीब में त्यौहार मनाना लिखा ही नहीं है"?
"तो क्या माँ सचमुच ही हम जीवन में कभी कोई त्यौहार नहीं मना पायेंगे"?
"बिटिया, हमारी तो जैसे तैसे कट गयी। यदि तुम अपने जीवन में त्यौहारों का आनंद लेना चाहती हो तो बस एक ही रास्ता है"।
"जल्दी बताओ माँ, कौनसा रास्ता है।मैं दौड़कर पार कर लूंगी"।
"नहीं मेरी बिटिया, यह रास्ता दौड़कर तय नहीं होता है।इसे तो लगन और मेहनत से ही पार किया जा सकता है"।
"तो बताओ ना माँ, वह कौनसा रास्ता है"।
"बिटिया रेशमा वह रास्ता है, पढ़ाई, लिखाई और शिक्षा का रास्ता"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय ब्रजेश कुमार ब्रज जी
हार्दिक आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी
वाह..उत्तम सन्देश देती हुई रचना..बधाई
SNDESHPRK ACHCHI LGHUKTHA
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
जनाब तेजवीर साहिब ,बहुत ही सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आपकी बेबाक़ टिप्पणी मेरी हौसला अफ़ज़ाई का सबब बन जाती है।सादर।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
सहज मार्मिक और विचारोत्तेजक वार्तालाप में समर्पित समझदार मां का समुचित मार्गदर्शन और शिक्षा सम्प्रेषित करती बेहतरीन रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तेज वीर सिंह साहिब। आपकी एक और स्वाभाविक भावपूर्ण बेहतरीन लघुकथा। शीर्षक भी बढ़िया है।
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