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छोटी सी ज़िन्दगी में किसे ख़ुश बता करूँ,
ज़लता चराग़ हूँ मैं अँधेरे का क्या करूँ ।
कैसे सुनाऊँ सबको महब्बत की दास्ताँ,
या फिर बता दो दर्द वो कैसे सहा करूँ ।
ये माना ख़ुद की फ़िक्र में इतना नहीं सकूँ,
जो मिलता ज़ख्म-ए-ग़ैर के मरहम मला करूँ ।
दस्तक़ तू दे ऐ मौत, मज़ा तब है, हो नशा,
मैं जब खुदा के ध्यान में सिमरण किया करूँ ।
जब हो नसीब में ये तग़ाफ़ुल ये बेरुख़ी,
तो बे-हया ये ज़िन्दगी कैसे ज़िया करूँ ।
तगाफुल=उपेक्षा, ग़फ़लत
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मौलिक व अप्रकाशित
हर्ष महाजन
Comment
जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
क्या कहूँ----आदरणीय नीलेश जी, आपने जिस तरहाँ से होंसिला अफ़ज़ाई की है उसके लिए शुक्रिया लफ्ज़ बहुत छोटा महसूस हो रहा है फिर भी इस ििइंतेखाब की पसंदगी के लिए ममनून हूँ सर । मेरा इस ग़ज़ल को कहना सफल हुआ । ऐसे ही नज़रे कर्म बनाए रखियेगा ।
सादर !
वाह वाह आ. हर्ष जी ..
आपको पहली बार पढ़ रहा हूँ ...बहुत खूब..
आपसे आगे भी बेहतर की अपेक्षा रहेगी ..
बाक़ी बातें अगली रचना पर
सादर
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपकी पसंदगी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
सादर ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी ग़ज़ल पर आपकी प्रोत्साहन भरी टिप्पणी के लिए तहे दिल से आभार ।
सदर ।
आदरणीय हर्ष महाजन जी आदाब,
बहुत अच्छी ग़ज़ल का प्रयास है । अच्छे अश'आर से सजी ग़ज़ल है । ग़ज़ल थोड़ा वक़्त माँग रही है । इस बारे में गुणीजन अपनी राय देंगे । मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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