2122 2122 2122
बेवफा वे अब कहाँ,अपने हुए हैं
वर्जनाएँ तोड़कर आगे बढ़े हैं।1
दो कदम उनके हुए तो कम नहीं हम
कुछ कदम चलकर मुरव्वत से मिले हैं।2
गालियाँ उनकी नहीं लगतीं बुरी अब
लफ्ज उनके चासनी में ज्यों सने हैं।3
दोस्ती का सिलसिला चलता रहेगा
लोग वैसे कह रहे,चिकने घड़े हैं।4
डर सताता हार जाने का हमेशा
इस कदर ही मोहरे कि त ने लुटे हैं।5
फूलती-फलती रहे अपनी तिजारत
नाव जिनकी डूबती वे आ फँसे हैं।6
बढ़ रहा रुसवाइयों का जोर फिर से
शेर औरों के उड़ा हमने कहे हैं।7
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आ० मनन जी आदाब | बहुत ही सुंदर पर्यास |
बधाई सवीकार करे |
सादर |
आदरणीय समर जी, आदाब एवं शुक्रिया।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
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