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दोनों हाथ (नए ढंग से पुनःप्रस्तुति का प्रयास )

आदित्य और नियति(शादी के पहले छह महीने )

खाना लगा दूँ ?” घर लौटे आदित्य से नियति ने पूछा

“दोस्तों के साथ बाहर खा लिया |”

“बता तो देते |” नियति ने मुँह गिराते हुए कहा

“कई बार तो कह चुका हूँ कि जब दोस्तों के साथ बाहर जाता हूँ तो खाने पर इंतजार मत किया करो |”आदित्य ने तेज़ आवाज़ में कहा

नियति की आँखों में आँसू आ गए आदित्य

“अच्छा बाबा सॉरी !अब प्लीज़ ये इमोशनल ड्रामा बंद करो |” आदित्य ने कान पकड़ते हुए कहा और नियति अपने आँसू पोछने लगी

रात को नियति को अपनी तरफ खींचते हुए-अब मुँह क्यों गोलगप्पा बना हुआ है |इतनी रोमांटिक रात को ऐसे ही बर्बाद कर दोगी !

“आदित्य मेरा मूड नहीं है |”

“पर मेरा मूड तो है-----“

“प्लीज़ आदित्य ----“

“गो इन हेल !”

और आदित्य दूसरी तरफ मुँह करके सो जाता है और नियति रात भर विचारों के ज्वार-भाटे से जूझती है |नींद ना आने पर वो आदित्य के सीने पर हाथ रखती है |आदित्य की नींद खुल जाती है और दैहिक समर्पण की निश्छल धार से कछारों पर जमा कचरा बह जाता है |

“मैं तुम्हारे लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हूँ ?” आदित्य की छाती के बालों को सहलाती नियति ने पूछा

“तुम मेरी ज़िन्दगी हो |मेरी बेटर-हाफ़ हो |------तुम वो औरत हो जिसके बिना मैं जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता | आई लव यू !” आदित्य ने उसका माथा चुमते हुए कहा |

“क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हारी बातों में विरोधाभास है |”

“मेरा सब कुछ तुम्हारा है ----मेरा तन मेरा मन मेरा धन ---फिर तुम्हें ऐसा क्यों लगता है ---मुझे लगता है जरुर किसी वाहियात सीरियल का असर है तुम्हारे दिमाग में |” आदित्य नाराज होते हुए बोला

“क्या जरूरतों को पूरा कर देना भर प्यार है ?”

“मतलब |”

“आपका जब जी चाहे दोस्तों के साथ बाहर निकल जाओ -----जो पसंद ना आए उसे छुओं भी ना ----दिल ना करे तो मुझे हाथ भी ना लगाओ ----मैं ऊँची आवाज़ में बोल दूँ तो मेरे मायके तक फ़ोन कर दो |”

“मैं तुम्हारा पति हूँ !मैं इसीलिए इतनी मेहनत करता हूँ कि तुम्हें कोई कमी ना हो |-----और तुम हो कि |”

“और मैं भी तो तुम्हारी पत्नी हूँ ---अभी तो तुमने कहा था बैटर-हाफ़ |” उसने धीमी आवाज़ में कहा

“वो तो ठीक है—पर समाज ऐसे ही चलता है---अपने घर में देख लो---मेरे घर में देख लो ---अड़ोस-पड़ोस में----औरत की एक भूमिका है---एक दायरा है----जब तक वो दायरे में रहती है घर घर बना रहता है |जहाँ औरते आदमी से होड़ करती हैं घर बिखर जाता है |”

“सॉरी|” अपनी भूमिका एवं स्थिति का आंकलन करती हुई नियति धीमे से बोली

वैसे भी उसे पता था कि वो आदित्य से बहस में जीत नहीं सकती |जहाँ नियति ने आवाज़ ऊँची की आदित्य का पुरुषीय अहंकार उसके बदन से बहस करने लगेगा और प्रकृति का ये असंतुलन उसे ही हार मानने को विवश कर देगा |

“यह कौन सी परिपाटी है की शादी के बाद लड़की ही लड़के के घर जाए ?” शादी तय होने के बाद एक दिन नियति ने पूछा था

“मेरी जान हम तो आपके लिए आपके घर बस जाएँ |पर अपने पिताजी और भाईयों से तो पूछ लो ----वो क्यों नहीं गए ?”

और नियति निरुत्तर हो गई |पितृ-सत्तात्मक समाज के बनाए नियमों के विरुद्ध जाने का साहस उसमे ना था |वो देहात में पली-बढ़ी एवं वहीं के संस्कारों में ढली लड़की थी |उसने देखा था कि माँ घर में सबसे पहले जगती है और सबसे बाद में सोती है |उसने देखा था कि घर में सबका पेट भर के माँ आखिरी में बचा-खुचा खा लेती है और कई बार माँ केवल पानी पीकर भी सो जाती है |उसने देखा था कि दादा घर के नलकूप पर जंघिया पहनकर नहा सकते हैं पर अम्मा के सिर से गलती से भी पल्लू गिर गया तो उन्हें पिताजी दादाजी अपनी गालियों से उन्हें संस्कारो की याद दिलाते थे |उसे संस्कारों  में ही ये घुट्टी पिलाई गई थी कि स्त्री का अपना कोई वर्चस्व नहीं है |माईके में वो किसी की अमानत है और ससुराल में किसी की दौलत |जब कॉलेज में गई तो हृदय अपने हमउम्र साथी को देखकर फड़फड़ाया पर संस्कारों ने बागी नहीं होने दिया |बीच में ही पढ़ाई छुड़वा दी गई |वो सोचने लगी कि क्या स्त्री होना इतना बड़ा अपराध है |ऐसे में जब विवाह तय करते समय आदित्य ने प्रश्न पूछने को कहा तो

“आप पति-पत्नी के रिश्ते को कैसे परिभाषित करोगे ?”

“मेरे विचार में पति-पत्नी शरीर के दोनों हाथ है |एक में गति होती है,लय होती है,निपुणता होती है और दूसरा कुछ कमज़ोर और धीमा होता है पर दोनों मिलकर असाध्य को भी साध्य कर सकते हैं |”

मंत्रमुग्ध हो गई थी उसके इस जवाब से |क्या पता था उसे कि मजबूत हाथ को अपनी शक्ति एवं कुशलता पर घमंड भी होता है और वो दूसरे हाथ की कमजोरी की खिल्लियाँ भी उड़ाता है |

एक बार बहस होने पर नियति ने आदित्य को उसकी दोनों हाथ वाली बात याद दिलाई

झल्लाए हुए आदित्य ने कहा-मैं अपने सीधे हाथ से लिखता हूँ,खाता हूँ और ढेरों काम करता हूँ पर उलटे हाथ का इस्तेमाल संडास में ही करता हूँ |

 

शादी से पहले आदित्य

“क्या माल है भाई !” दिल्ली हाट पे आइसक्रीम खा रहे मोहित ने कहा

“यार अब तुम विवाहित हो |पत्नी-व्रता बनों |” आदित्य ने समझाते हुए कहा

“भाई उपदेश मत दे,इससे चिपक थोड़े रहा हूँ----आँखों से चुस्की काटने में क्या हर्ज़ है |”

“और भाभी ऐसा करे तो ?”

“जब तक वो अपनी सीमा नहीं लांघती तब तक मुझे कोई आपत्ति नहीं है |”

“कौन सी सीमा ?”

“सीधी सी बात है अगर वो मुझसे नाखुश है तो बता दे |अगर मैं उसे खुश नहीं रख सकता तो मुझे उसे बाँधने का कोई अधिकार नहीं है |बस सब कुछ सहमति से होना चाहिए |अगर मैं खूंटे का बैल नहीं बन सकता तो क्यों उसके लिए खूंटा बनूँ |ट्रस्ट मी. |” मोहित ने खाली स्टिक नीचे फैंकते हुए कहा

“मैंने वो फिल्म डाउनलोड कर ली और देख भी ली |” मोहित ने बात बढ़ाते हुए कहा

“कौन सी ?”

“लिपस्टिक अंडर माई बुर्का |”
“अच्छा|क्या स्टोरी है ?”

“मुझे तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली बात लगी ----वही औरतों का आज़ादी---एक मुस्लिम लड़की  मॉडल बनने के लिए चोरी करती है---एक शादी-शुदा मुस्लिम औरत जिसका खसम किसी दूसरी के चक्कर में फँसा है और एक अधेड़ अविवाहित औरत जो एक नौजवान पर लट्टू हो जाती है और बाद में सब सद्गति को प्राप्त होती हैं |”

“मतलब मर जाती हैं ?” आदित्य ने जिज्ञासा व्यक्त की

“नहीं |चोरनी पकड़ी जाती है |उस औरत को उसका आदमी उसकी औकात बताता है और बूढी बुआजी की सबके सामने आईना दिखाया जाता है |”

“पर क्या विवाहोतर सम्बन्ध सही हैं ?—और उन बूढों का क्या जो अपनी बेटी और पोतियों जैसी बच्चियों का भी दैहिक शोषण करने से बाज नहीं आते और कई बार तो निज सम्बन्धों की मर्यादा भी भंग कर देते हैं |कल ही मैं एक खबर देख रहा था जिसमें एक बहू ने अपने ससुर पर पोती से गलत काम करने की शिकायत की है |”

“ऐसे आदमी को तो भरे चौराहे जूते मारने चाहिएं पर आदमी तो खुला सांड है जहाँ चारगाह देखेगा वहाँ जाएगा ही |मेरे विचार में तो अगर बाहर की पूड़ी खाने का मौक़ा मिले तो उसे छोड़ना मुर्खता है और जहाँ तक बूढ़ों कि बात है यह तो विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है कि मर्द कभी बुढ़ा नहीं होता |”

“अच्छा उस औरत का क्या हुआ जो तुम्हारे मोहल्ले में धंधा करती थी |”

“मोहल्ले वालों ने पीटकर पुलिस को दे दिया----उसकी कोई बेटी थी पन्द्रह साल की----पार्षद को पसंद आ गई थी ---पर वो मानी नहीं----अब जेल में जाने कैसे निपटेगी इन सफ़ेदपोश भेड़ियों से  |”

“तू भी तो जाता था ना शादी से पहले ?”

“हाँ,मुझे बहुत दुःख है |बेचारी !”

“कह तो ऐसे रहा है जैसे वो तेरी प्रेमिका हो ! ”

“प्रेमिका से भी बढ़कर | फॉर मी शी वाज़ गोडेश---वो क्या मैं तो सारी सेक्स-वर्कर्स को देवी ही समझता हूँ | ”

“ये चरित्रहीन स्त्रियाँ और देवी !”

“हमारे देश में इसे गंदा काम माना जाता है उसी तरह जैसे भंगी के काम को | पर देखा जाए तो इनके बिना सारा समाज एक विशालकाय कूड़ा-घर है |ये इनकी कर्मठता है कि समाज के कई पुरुष गिद्ध और भेड़ियों की शक्ल अख्तियार नहीं कर पाते |अपना तन परोस करके ये कितनी ही बच्चियों और महिलाओं का रक्षाकवच बनती हैं |”

“पर जिस चीज़ को समाज गलत मानता हो वो गलत ही है |”

“ये हमारे भारतीय समाज का दोगलापन है |समाज हमें कुएँ का मेढक बनाए रखना चाहता है |कई देशों में सेक्स-वर्कर्स को एक प्रोफेसेन की मान्यता मिलती है |देह का यह धंधा हमारी सभ्यता जितना ही प्राचीन है |गणिका,नगरवधू ,भट्टिनी ना जाने कितने सम्बोधनों से युग-युगान्तरों से हमारी पुरुष प्रजाति स्त्रियों का भोग करती रही है और अवांछित बता कर समाज से अलग-थलग भी रखती है |”

“क्या तू किसी धंधे वाली से शादी कर सकता था  ?”

“बस इतनी हिम्मत ही तो नहीं आ सकी |” मोहित ने गहरी साँस लेते हुए कहा

“पता है हम आदमियों की सबसे बड़ी समस्या क्या है ?” मोहित ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा

“नहीं |”

“हमारे भीतर का भेड़िया अभी भी हिंसक और जंगली है और हम खाल पहनकर स्वांग करते हैं कबूतर और खरगोश होने का  |

“मतलब !”

“इन बाबाओं को देख लो |वीरेंदर बाबा,आशाराम,नित्यानन्द एक लम्बी लिस्ट है |साs ले प्रवचन देते हैं काम-धन से मोह त्यागने का और खुद देखों कैसे-कैसे कुकर्म करते हैं |ये धर्म और पाखंड ही स्त्रियों का सबसे बड़े शोषक हैं |कोई सा भी धर्म उठा लो हर जगह स्त्री-देह को सात्विकता ,पवित्रता,मर्यादा के नाम पर ठगा जा रहा है |और जो औरत समानता,आज़ादी की बात करती है उसे अराजक,बदचलन,चालू जाने क्या-क्या कहकर नीचा करने का प्रयास किया जाता है |”

“मेरे विचार में तो समानता का वे आन्दोलन घर से शुरु होता है क्या तू भाभी के साथ घर के काम में हाथ  बंटाता है ?”

“पापा मना करते हैं ,कहते हैं आगे के लिए दिक्कत हो जाएगी |मम्मी भी बताती हैं कि उनके लाख बीमार रहने पर भी पिताजी ने उठकर एक गिलास पानी नहीं पिया |”

“पर बदलाव के लिए थोथले भाषण थोड़े काम आएँगे |अगर तेरी पत्नी बीमार है और तू काम को उसके नाम पर पड़ा रहने दे तो बदलाव कैसे आएगा |”

“यार,वो घर पर ही तो रहती है |काम ही क्या होता है घर पर |वैसे भी माँ भी हैं तो मैं क्यों किचन और बर्तन-भांडे में अपना वक्त बिताऊँ !”

“ऐसे भी एकल परिवार हैं जहाँ औरत नौकरी भी करती हैं और घर का सारा काम भी -----“

“अब क्या सारे समाज को बदलने का ठेका मैंने लिया है ?”

“अच्छा वो तेरे ऑफिस में जो नई लड़की आई है उसका क्या हुआ ?” आदित्य ने बात बदलते हुए कहा

“यार,शी इज़ अ हार्ड नट टू क्रेक ---शायद पहले से सैट है कहीं और “

“फिर तो भाभी के साथ ही जिस्म खेल वर्ना मर्डर टू का हिमेश रेशमिया हो जाएगा |”

और दोनों हँसते-हँसते विदा होते हैं |”

 

 आज का दिन 

प्रसव के छह माह बाद अज्ञात बीमारी से नियति की मृत्यु हो जाती है |इस घटना को तीन महीने बीत चुके हैं |एक दिन पहले आदित्य की मोटर-साईकिल सड़क के गड्डे में फँस कर गिर गई थी इससे उसके सीधे हाथ में मोच आ गई |घर के सभी लोग गाँव गए हैं और वह शहर में अकेला है |

आदित्य सीधे हाथ में निपुण है |रोजमर्रा के काम अति-कठिन हो गए हैं |वो उल्टा हाथ जिसकी भूमिका वह सिर्फ पिछवाड़ा धोने वाला मानता था की मदद  से ही काम हो पा रहे हैं |उसकी आँखों से आँसू ढलक पड़ते हैं और नियति उलटे हाथ की तरह उसके विचारों में दाखिल होती है

“आप किचन में मत घुसा कीजिए |जितनी मदद नहीं होती है उससे ज़्यादा मेरा काम बढ़ा देते हो ---देखिए कितने बर्तन गंदे कर दिए आप ने ---“ नियति ने मीठी झिड़क देते हुए कहा

“अच्छा,चख कर देखों,कैसा बना है,आज थोड़ा सा प्रयोग किया है |” आदित्य बोला

“लाजवाब !” नियति ने एक चम्मच मुँह में भरते हुए कहा

पर जब आदित्य अपना बनाया ही खाने बैठा तो एक लोटा पानी से जल्दी-जल्दी खाना निगलता गया |नियति चुपचाप खाती रही मुस्कुराते हुए |

“ये क्या बनाया है ! पूरी शीशी का तेल इसी सब्ज़ी में डाल दिया लगता है और मिर्च-मसाले |मारने का इरादा है क्या ?”

“सॉरी,हमारे घर पर तेल-मसाला ज़्यादा खाते हैं पर आगे से ध्यान रखूँगी |” नियति ने सहमते हुए कहा था

“तुम ही खाओ ये बकवास खाना |मैं बाहर जा रहा हूँ खाने |” नियति की पनीली आँखों की उपेक्षा करता हुआ वो बाहर निकल गया

आज वह अहसास करता है कि प्यार तेल मसालों का अनुपात नहीं है वरन यह बनाने,परोसने और खाने वाले की भावनाओं का समन्वय है |

सहसा उसकी दृष्टि हैंगर पर टंगी कमीजों पर जाती है |कई शर्ट नियति खुद पसंद करके लाई है |

वो कभी खुद कपड़े नहीं लाता |

“तुम्हारी पसंद बूढ़ों जैसी है----मैं खरीदूँगी तुम्हारे कपड़े |” नियति ने शहर आकर उसके कपड़ों का मुआयना करके घोषणा की

आदित्य नियति के साथ कपड़े खरीदने नहीं जाता और जो पसंद वो लाती उसे पसंद करने से पहले नियति को दुकान के तीन-चार फेरे लगाने पड़ते |अंत में ना-नुकर करके वो उसकी किसी एक पसंद पर हामी भर लेता |

“बहुत सुंदर शर्ट है |तुम पर सूट करती है |ऐसे ही कपड़े पहना करो ---“ आफिस-कलिग मिस. जया ने उसे कम्पलीमेंट दिया

“थैंक्स—ये अदिति लाई है |”

“वही तो मैं भी सोचूँ ----गुड! बहुत अच्छी पसंद है उनकी |”

वो मन ही मन खुश हुआ |पर अदिति के पूछने पर कहा किसी ने नोटिस ही नहीं किया |वो नहीं चाहता था कि उल्टा हाथ सीधे पर रौब झाड़े |

उसने कपड़ों की अलमारी खोली |पर वहाँ केवल पैन्ट थीं |शर्ट तो बाहर ही टंगी थी और उन्हें टांगना उसकी विवशता थी |उसे शर्ट तह करनी नहीं आती थी |अदिति के रहने तक सभी धुले-इस्त्री किए कपड़े उसके द्वारा नीयत शेल्फ में तह करके ही रखे जाते थे |कमबख्त ये उल्टा हाथ !

प्रतीक के जन्म के एक माह बाद से नियति बीमार रहने लगी |यद्यपि बर माँ जच्चा-बच्चा को सम्भालने के लिए गाँव से आ गईं थीं पर वे स्वयं कमर और पेट रोगों से पीड़ित थीं |

घर में बहू और सास के बीच शीत-युद्ध चल पड़ा था और आदित्य को जब इसकी भनक लगी तो उसने मोर्चा सम्भालने की कोशिश की |

पर सास और बहू दोनों ने उसके कामों में कमियाँ निकालकर उसकी मध्यस्ता की कोशिश को नकार दिया

“जब तक जिंदा हूँ तुम्हें झाड़ू-पोंछा करने की जरूरत नहीं है |” ऐसा कहते हुए नियति ने आदित्य के हाथ से पोंछा छीन लिया

नियति की बीमारी डाईगनोज नहीं हो पा रही थी |डॉक्टर ने हिदायत दी थी कि प्रतीक को माँ से इन्फेक्ट होने का खतरा है |रात को सोते समय आदित्य और नियति के पैरों की तरफ प्रतीक को लेकर सोता था और केवल फीडिंग के लिए नियति के हाथ में देता था |

रात में प्रतीक बिस्तर गिला कर जब रोने लगता तो चुपचाप उसकी पैन्ट बदल उसे हिलाते-डुलाते सुलाने का प्रयास करता और बड़े प्यार से सो रही नियति के माथे पर हाथ फेरते हुए कहता-

“गएट वेल सून !मैं तुम्हारे बिना खुद को इमेजिन नहीं कर पा रहा |”

ऐसी ही एक रात जब उसने नियति के माथे पर हाथ फेरा तो नियति ने उसकी  हथेलियों  को पकड़कर अपने गीले गालों पर रख दिया था |उस रोज़ सीधे हाथ ने उलटे की जरूरत को पूरी शिद्दत से महसूस किया था |

नियति के बड़े भाई की शादी एक महीने बाद ही थी |वो उसे लेने आ गए |आदित्य चाहता था की नियति का पूरा इलाज हो जाए |पर ना नियति मानी और ना उसके पीहर वाले |

“वहाँ पर अच्छे डाक्टरों की कमी है क्या ? आप बेकार में चिंता मत करो ---“ फ़ोन पर उसकी सास ने भरोसा दिया

एक हफ़्ते बाद नियति का फ़ोन आता है-“डाक्टर ने खूब सारी दवाई लिख दी है |कहता है टी.वी. है |दूसरा डाक्टर कहता है लखनऊ पी.जी.आई. चले जाओ ----कुछ समझ नहीं आ रहा |”

“अगर तुम्हें लौटना है तो मैं लेने आ जाऊँ !रहने दो |अब शादी के बाद ही लौटेंगे |”

फिर एक दिन बाद

“सुनों,अगर मुझे कुछ हो जाता है तो तुम प्रतीक को मेरे माइके छोड़ देना |मेरे सारे गहने भी यहीं हैं और अपनी पसंद से दूसरी शादी कर लेना |”

“बहsनचोsद |” उसने फ़ोन काट दिया |उस दिन वो अपना आपा खो बैठा |उलटे हाथ को सीधे की निपुणता पर शंका थी |

फिर कुछ सोचकर दोबारा फ़ोन करता है-“मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा |और आगे से ऐसी बात मत करना |”

लाख कोशिशों के बावजूद आदित्य नियति को शहर वापस नहीं ला पाया |किसी तरह वह अपने और नियति की आखिरी निशानी प्रतीक को अपने साथ वापस ले आया पर अदिति के स्त्री-धन से उसे हाथ धोना पड़ा |

दीदी जो इसी शहर में रहती हैं |स्टेशन से ही प्रतीक को अपने साथ ले गईं |समय-समय पर वो प्रतीक से मिलने जाता रहता है |प्रतीक एक साल का हो चुका है और दीदी से उसका लगाव बढ़ रहा है |

दीदी कहती है- प्रतीक को मुझे दे दे |और तू अपनी पसंद से दूसरा ब्याह कर ले |

कभी-कभी दीदी मज़ाक में प्रतीक से आदित्य को मामा कहने को कहती है |

प्रतीक का मामा कहना उसे अंदर तक लहुलुहान करता है |

"नहीं ! वह प्रतीक का पिता है और पिता ही बनकर रहेगा |वह नियति के अविश्वास को झूठा साबित करेगा |वह सीधे हाथ की ताकत को साबित करेगा |"

फ़ोन की घंटी से उसकी अतीतयात्रा टूटती है |पिताजी का फ़ोन है |

“बेटा एक बहुत अच्छा रिश्ता है |लड़की विधवा है |”

“किसी भी निर्णय से पहले मैं उससे बात करना चाहूँगा |” उसने कमरे में लगी नियति की तस्वीर को देखा |उल्टा हाथ सीधे हाथ को सहारा देने की कोशिश कर रहा था |

सोमेश कुमार(मौलिक एवं एडिट की हुई )

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Comment by somesh kumar on March 21, 2018 at 10:08am

भाई जी 

     आप रचना पर आए उसे पढ़ने और ग्रहण करने का प्रयास किया इसके लिए आभार |जहाँ तक मंच पर लम्बी कहानी प्रस्तुत करने का सवाल है यह व्यक्तिगत लेखकीय कौशल एवं रुचियों की बात है |वैसे मैं खुद को भगोने जैसा मानता हूँ जिसे जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल  किया जा सकता है |मैं लिखने के लिए पहले विधा तय नहीं करता वरना विषय सामग्री को किस रूप में सन्तोषजनक ढंग से प्रस्तुत कर सकता हूँ उसे प्रस्तुति का माध्यम बनाता हूँ |

नि:संदेह रचनाओं पर कम लोगों का आना खटकता है परन्तु यह अपनी-अपनी सुविधा और रुचियों की बात है |चुकीं मंच मुख्यतः लेखक समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है |ऐसे में यह अपेक्षा रहती है की मंच के सभी सदस्य अपनी रुचियों का परिष्कार और विस्तार करें और अलग -अलग विधाओं का सम्वर्धन हो |

पर अंत में यह अपनी सहूलियत का मामला है |

अगर आपने कहानी पूरी पढ़ी हो तो इसकी कमियाँ इंगित कर अपेक्षित सुधार बताया करें |

Comment by नाथ सोनांचली on March 20, 2018 at 11:14pm

सोमेश जी सादर अभिवादन। कोशिस की कहानी पढ़ने की पर बाद में मुझे कथानक समझ से आने लगा। लिखते अच्छा है आप पर इतनी बड़ी कहानी यहाँ के लिए शायद उचित नहीं। बधाई लीजिये आप

Comment by somesh kumar on March 17, 2018 at 11:22pm

sir

   aap rchna pr aae aur apni schchi imandari se btai itna kafi hai .20 20 ke time me 5 din ka test khelna aur use enjoy krna sbke bs ki baat nhi hai.

chuki chaar vrsh phle maine ye khani jb likhi thi to mujhe mnch ke diggj guruo se apekshit margdarshan aur sujhav mila tha isili maine is khani ko punh prstut krne ki koshish ki hai aur mujhe ummid hai ki mujhe unka aashish avshy milega 

Comment by Samar kabeer on March 17, 2018 at 6:32pm

जनाब सोमेश जी आदाब,इतनी तवील कहानी पढ़ना मेरे बस की बात नहीं,क्षमा चाहूँगा,इस प्रस्तुति पर बधाई आपको ।

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